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तथा संचालन करने वाला कोई चाहिये; जैसे—वन में दिखाई देता कोई मकान अथवा कुटिया । काया में मशीनरी है । मस्तक में संदेश कार्यालय, संदेशवाहक ज्ञानतंतु श्रर्थात् तार, कार्यालय के नीचे आत्माराम को सृष्टि का मजा चखाने के लिए आँख, कान, नाक, जीभ और स्पर्शेन्द्रिय रूपी पांच झरोखे हैं । वहां इन प्रत्येक के माध्यम से ग्राह्य वस्तुएं नाटक, संगीत, बाग-बगीचे, मिठाइयां तथा सुकोमल वस्तुएं प्रादि जब उपस्थित हो जाती हैं तब इनका अनुभव कर राजा आत्माराम आनंदविभोर होता है । इसी प्रकार शरीर महल में गले में वाद्य यन्त्र, हृदय में जीवन शक्तियां, उसके नीचे भंडार और रसोईघर तथा नीचे पेशाबघर और पाखाना है । ऐसा विचित्र कारखाना किसने बनाया ? श्रौर सबका संचालक कौन ? तो उत्तर में आत्मा ही कहना पढ़ेगा । ईश्वर को अगर कर्ता कहें तो वह अपूर्ण इञ्जिनियर सिद्ध होगा ! क्योंकि खाने पीने की लिप्सा हो, और मल मूत्र का बोझ उठा कर फिरना पड़े, ऐसा शरीर क्यों बनाया ? चलता हुआ व्यक्ति श्रागे देख सके पर पीछे न देख सके, ऐसी अधूरी प्रांख क्यों रक्खी ? किसो का रूपवान्, और किसी का बेडौल, किसी का स्वस्थ और किसी का अस्वस्थ, किसी का देखने में समर्थ और किसी का अंधा ऐसा शरीर क्यों बनाया ? यदि कहें कि 'अपने अपने कर्मानुसार', तो प्रश्न उठता है कि यह 'अपने' अर्थात् किस के ? अगर जीव का कहते हो तो जीव सिद्ध हो गया !
(४) शरीर, इन्द्रियां और गात्र भोग्य हैं, तो कोई भोक्ता भी चाहिए । सुन्दर वस्त्र की भांति सुन्दर देह पर प्रसन्न होने वाला कौन ? दो हाथ श्रौर दो पांव नोकर जैसे हैं । इनके पास काम कौन लेता हैं ? उत्तर मिलता है। राजा आत्माराम | महल में राजा होता है वहीं तक सभी स्थान ताजे हैं, राजा चले और स्वामी के बिना घर सूना । जीव रूपी माली के बिना देह बगीचा खड़ा खड़ा सूख कर एक दिन उजाड़ हो जाता है । श्रात्मा के बिना कौन सम्हाले प्रोर कौन भोगे ?
(५) इन्द्रियां करण हैं अतः इनका अधिष्ठाता यानी इनसे काम लेने
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