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इससे निश्चित है कि उसके पास हजार रुपये तो हैं ही । वृद्ध ने युवावस्था देखी ही है ऐसा कहा जाता है क्योंकि इतनी लम्बी आयु में युवावस्था की प्रायु समा जाती है । परन्तु श्रात्मा किस में समा जाती हैं जिससे कह सकें कि यह वस्तु है अतः श्रात्मा तो है ही । ऐसी एक भी वस्तु नहीं है ।
ऐतिह्य प्रमाण :- ऐतिहासिक प्रमाण में दंतकथादि श्राती हैं जैसे किसी जी मकान में वर्षों से भूत का निवास है इस प्रकार परंपरा से लोग जानते चले आ रहे हैं । ऐतिह्य प्रमाण से वंश परंपरा तक यह बात चली आती है, परन्तु श्रात्मा के संबंध में ऐसी कोई कहावत प्रचलित नहीं है, क्योंकि कोई ऐसा श्रमर शरीर दिखाई नहीं देता जिसमें श्रात्मा का निवास होने की कहावत वंश परंपरा से चलती हुई आज मिलती हो ।
प्रश्न - श्रात्मा को मानने वाले अमुक वर्ग में तो परम्परागत ऐसी भिन्न श्रात्मा होती है - ऐसा क्यों ?
कहावत चली प्रा रही हैं कि शरीर में
उत्तर -- यह प्रचार सर्वलोक में सिद्ध न होने से प्रमारणभूत नहीं माना जा सकता। साथ ही प्रमुक वर्ग में ही प्रचलित कितनी ही दन्तकथाएँ अप्रामाfor अर्थात् मिथ्या भी होती हैं । अतः ऐतिह्य प्रमाण से आत्मा की सिद्धि नहीं होती ।
तो अब रहा
श्रागम प्रमाण -- शब्द प्रमाण :
- उपरोक्त श्रनेक प्रमाणों में से एक भी प्रमारण जिसमें घटित न होता हो ऐसे भी पदार्थ की सिद्धि में श्रागम अर्थात् प्राप्त (विश्वसनीय) पुरुष के वचन रूपी शब्द प्रमारण घटित हो सकते हैं । जैसे पिता के वचनमात्र से पुत्र ने जाना कि उसके दादा अमुक हैं । इसी प्रकार चन्द्र ग्रहण, चन्द्र- उदय, सूर्यग्रहण श्रादि ज्योतिष शास्त्र से सिद्ध होते हैं । इनमें पहले से प्रत्यक्ष, अनुमान यादि प्रमाण घटित नहीं हो सकते । अब श्रात्मा के संबंध में चाहिए तो इसकी पुष्टि में शास्त्र तो मिलते हैं, परन्तु शास्त्र श्रात्मा के संबंध में अनेकानेक परस्पर विरोधी बातें करते हैं; जैसे :--
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