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श्री महावीरदेव ने तर्क, युक्ति, प्रमाण से जो निवारण किया है उसका पालेखन है। ‘जीव नहीं है' इसकी पुष्टि की दलीलें और 'जीव है' इसके प्रमाण की दलीलें संक्षिप्त में यहां दी जाती हैं ।
'जीव नहीं है। इसकी सिद्धि प्रमारण बिना 'जीव' प्रसिद्ध :-भगवान अब जीव को अलए न मानने वालों की युक्ति बताते हैं;-पृथ्वी आदि तत्त्वों से जीव जैसा भिन्न तत्त्व (भिन्न पदार्थ) सिद्ध करने में कोई प्रमाण होना चाहिए जो मिलता नहीं; और प्रमाण के बिना कोई भी वस्तु मान्य हो नहीं सकती। बड़े बड़े वादी प्रमाण पर जूझते हैं। किसी के द्वारा प्रस्तुत प्रमाण यदि गलत सिद्ध हो जाय तो उस प्रमाण पर आधारित प्रतिपादन और उस प्रमाण का विषय टिक नहीं सकता। प्रमाण अनेक हैं जैसे प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, अर्थापत्ति, संभव, पागम आदि। इनमें से किसी एक प्रमाण से भी भिन्न जीव सिद्ध होता हो तो 'जीव है'--ऐसा प्रामाणिक निर्णय लिया जा सकता है; परन्तु सिद्ध करने वाला प्रमाण ही तो मिलता नहीं। वह इस प्रकार :
प्रत्यक्ष प्रमाण से प्रात्मा सिद्ध नहीं होती:-क्योंकि प्रत्यक्ष करने के लिए पांच इन्द्रियाँ है, इनमें से एक भी प्रात्मा का अनुभव नहीं कर पाती । प्रात्मा घड़े की भाँति दृष्टिगम्य नहीं है, शब्द की भांति कान से श्रव्य नहीं है, तथा रस की भांति जीभ इसे चख भी नहीं सकती। इस प्रकार प्रात्मा देखी या जानी नहीं जा सकती।
प्रश्न-जीव प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देता फिर इसे कैसे माने ? यद्यपि परमाणु स्वतन्त्र रूप से प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देते, फिर भी इनके कार्य घड़े के रूप में दिखाई देते हैं. इसलिए इनका तो निषेध नहीं किया जा सकता, परन्तु आत्मा तो स्वतंत्र तो क्या, पर किसी कार्यरूप में भी दृष्टिगोचर नहीं होती, तब इसका अस्तित्व कैसे मान्य हो ?
__उत्तर-जगत में प्रत्यक्ष नहीं होते हुए भी किसी वस्तु की भांति प्रात्मा अनुमान से मानी जाय, जैसे-झोंपड़ी के अन्दर रही हुई अग्नि बाहर प्रत्यक्ष
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