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संदेह था कि 'जीव यहां जैसा होता है वैसा ही दूसरे भव में भी होता है अथवा भिन्न होता है ? ' । इन दोनों के पास भी ५००-५०० विद्यार्थी थे । (६) मंडित ब्राह्मण को बंध के विषय में शंका थी । इन्हें होता था 'क्या जीव सदा शुद्ध बुद्ध तथा मुक्त रहता है अथवा इस पर किसी प्रकार का बंधन लगता है ? और फिर उपाय से मुक्त बनता है ?' (७) मौर्यपुत्र को देव का संशय था । 'स्वर्ग जैसी कोई वस्तु भी होती है क्या ?' दोनों के पास ३५०-३५० विद्यार्थी पढ़ते थे । ( ८ ) इसी प्रकार प्रकंपित के मन में नरक के विषय में शंका थी । ( १ ) अचल भ्राता को पुण्य के विषय में शंका थी । 'पुण्य कोई स्वतंत्र वस्तु है अथवा पाप के क्षय को ही पुण्य कहते हैं ?' (१०) मेतार्य को परलोक के विषय में शंका थी । और (११) प्रभास नामक विद्वान् को मोक्ष के विषय में शंका थी । 'क्या मोक्ष जैसी कोई निश्चित् स्थिति है ? क्या अनंत शाश्वत श्रात्म सुख है ? या संसार पूर्ण होने पर जीव का क्या सर्वथा नाश हो जाता है ?' आदि इनकी शंकाएं थीं । इनमें से प्रत्येक के पास ३००-३००
विद्यार्थी थे ।
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११ गरधर और उनके संदेह
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मुख्य ११ ब्राह्मण और इनके ४४०० विद्यार्थी यज्ञ समारंभ में भाग ले रहे थे । वहां लोगों के गमनागमन और बातचीत से उन्हें पता चला कि कोई सर्वज्ञ श्राये हैं |
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इन्द्रभूति का अभिमान — दूसरी ओर प्रकाश में से देवतानों को नीचे उतरते देखते हैं । ब्राह्मरण प्रसन्नता से फूले नहीं समाते हैं । 'ग्रहा ! देखो,