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संख्या भजन १३५. मैं एक शुद्ध ज्ञाता १३६. मैं निज आतम कब ध्याऊँगा १३७. रे भाई ! मोह महा दुखदाता १३८. रे भाई ! संभाल जगजाल में १३९. लाग रयो मन चेतनसौं जी १४०. लागा आतम सौं नेहरा १४१. लागा आतमराम सौं नेहरा १४२. वे परमादी ! तँ आतमराम न जान्यो १४३. सबको एक ही धरम सहाय १४४. सब जग को प्यारा १४५. सबमें हम, हममें सब ज्ञान १४६. सुन चेतन इक बात हमारी १४७. सुनो! जैनी लोगों, ज्ञान को पंथ कठिन है १४८. सुनो जैनी लोगों ! ज्ञान को पंच सुगम है १४९. सुन सुन चेतन ! लाड़ले १५०. सोई कर्म की रेख पै मेख मारे १५१. सोई ज्ञान सुधारस पीवै १५२. सो ज्ञाता मेरे मन माना १५३. श्री जिनधर्म सदा जयवन्त १५४. शुद्ध स्वरूप को वन्दना हमारी १५५. हम लागे आतमरामसों १५६, हमको कैसे शिवसुख होई १५७. हम तो कबहुँ न निज घर आये
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