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. धर्माभ्युदय महाकाव्य .. ___ ए रीते वालकेश्वरना ए चातुर्मास दरम्यान, म्हारु सतत संघर्षात्मक मनोमन्थन चालु रह्य. ए वधुं तो विस्तृत रूपे आलेखवानो अहिं प्रसंग नथी. अहिं तो फक्त पू० प्रवर्तकजी महाराज अने श्री चतुरविजयजी महाराज साथेनां पुनीत स्मरणोनी दृष्टिए ज एनी ट्रॅकी नोंघ लेवामां आवी छे..
घणुं करीने ए चातुर्मासना छेल्ला समयमां, पूनाना 'भांडारकर ओरिएन्टल रीसर्च इन्स्टीट्यूट'ना संस्थापक्रोमांनी मुख्य व्यक्तिओ-डॉ० गुणे, डॉ. वेल्वलकर अने डॉ. सरदेशाइनुं बनेल एक डेप्युटेशन, मुंबईना जैन समाजने, ए नवीन स्थापित थता भारतीय साहित्यना संशोधन मन्दिरने काईक आर्थिक सहायता अपाववानी विनंति करवा अर्थे आव्यु. मुंबई सरकारनी मालिकीनो, प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथोना संग्रहनो जे महान ज्ञानभंडार, पूनानी डेक्कन कॉलेजमा राखवामां आवेलो हतो तेने, सरकारे ए इन्स्टीट्यूटना अधिकारमा अने स्थानमा राखवा देवानो स्वीकार कयों हतो. ए ग्रन्थसंग्रहमां, जैन ग्रन्थोनो पण घणो सारो संग्रह थएलो होवाथी, जैनोने पण एमां सहकार आपको योग्य छे अने तेम थवाथी ए द्वारा जैन साहित्यना प्रकाशनने पण विशिष्ट लाम मळे तेम छे-एवी दृष्टि लईने ए प्रतिनिधि मंडळ, गोडीजीना जैन उपाश्रयमा प्रवर्तकजी महाराज पासे आव्यु हतुं, अने वीजे दिवसे व्याख्यान वखते ए भाईयोए उपस्थित श्रोताओ आगळ पोतानी इन्टीट्यूट विपेनी वधी कल्पना अने योजना रजु करी हती. हुं पण ए सभा प्रसंगे हाजर हतो. प्रवर्तकजी महाराजे तथा वीजा भाइओए ए प्रसंगे केटलुक प्रासंगिक विवेचन करीने जैन समाजे ए इन्स्टीट्यूटने यथाशक्य आर्थिक सहायता विगेरे आपवी जोईए एम जणाव्यु हतु.
जैन साहित्य अने जैन इतिहासर्नु नवीन पद्धतिए संशोधन-प्रकाशन आदिना कार्यमा म्हने विशेष रस छे, तेथी म्हारा स्व० सहृदय साक्षरमित्र श्रीमोहनलाल द० देशाई डॉ० गुणेने खास. मळवा माटे म्हारी पासे वालकेश्वर लईने आव्या. हुं इंग्रेजी तो ते वखते विशेष समजी शकतो न हतो तेथी डॉ. गुणे मांगी-तूटी हिन्दीमा वोलवा लाग्या. परंतु म्हने मराठी भाषा ठीक ठीक समजाय छे अने वोलतां पण साधारण आवडे छे, ए जाणीने तेओ वधारे प्रसन्न 'थया अने अमे वेक कलाक सुधी वेसीने जैन साहित्यविपेनी अनेक प्रकारनी चर्चा करी. म्हें तेमनी पासेथी पूना तेम ज तेमना नूतन स्थापित इन्स्टीट्यूट विपेनी बधी भावना विस्तारथी समजवानो प्रयत्न कों. डॉ. गुणेना पांडित्य अने उत्साहथी हुँ तेमना व्यक्तित्व तरफ आकर्षायो अने म्हारी जिज्ञासा अने कार्यप्रवृत्तिथी ते म्हारी तरफ आकर्षाया. म्हने तेमणे प्रत्यक्ष पूना आववानो आग्रह कों अने पूनामां रहीने हुँ जैनसाहित्यना संशोधन-प्रकाशन अंगे विशिष्ट कार्य करवानी साधन-सामग्री प्राप्त करी शकीश एवी तेमणे म्हने केटलीक कल्पना आपी. फर्ग्युसन कॉलेजमा उच्च प्रकारना अध्ययन माटे एक सेमिनारनी स्थापना करवामां आवेली छे अने तेमां एक-वे जैन स्कॉलरो पण जैन साहित्य अने तत्त्वज्ञाननो खास अभ्यास करी रह्या छे-ए विगेरे हकीकत पण तेमणे म्हने जणावी.
डॉ. गुणेना मेळापथी म्हारं मन पूनानी यात्रा करवा उत्सुक थयु. पूना ते वखते भारतनुं एक मुख्य प्रगतिशील शहेर मनातुं हतुं. राजकीय, सामाजिक तेम ज शैक्षणिक प्रवृत्तियोन ते म्होटुं केन्द्रस्थान हतुं. एटले पूना जवानी अने जोवानी म्हने खास उत्कंठा, थई रही. त्यां