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धर्माभ्युदय महाकाव्य .. तेना वीजे वर्षे आखा देशमा भयंकर इन्फ्ल्यु एन्जानी बीमारीनो महा प्रकोप थयो अने तेना लीधे पूनाना ए बॉडिंग हाउसमा रहेता बधा विद्यार्थियो पण पोतपोताना स्थाने चाल्या गया अने बॉर्डिंग हाउस बन्ध जेवू थयु. हुं म्हारा आहारादिनी सुलभतानी दृष्टिए पूना शहेरनी जैनधर्म शाळामा जईने रह्यो, परंतु थोडाक दिवस पछी हुं पण ए बिमारीमा सपडायो. एकाकी ज हतो. साधे कोई परिचारक के परिचित जन जेवो न हतो. गाममां जैनो घणा हता परंतु तेमने कोईने म्हारी कशी विशेष खबर न हती. तेथी कोई डॉक्टर के वैद्यनी कशी सहायता न मळी. बराबर १०-११ दिवस सखत ताव रह्यो. उठवा-बेसवानी शक्तिना अभावे म्हें अन्न लेवानुं तो सर्वथा बन्ध ज कर्यु हतुं; परंतु धर्मशाळानो एक मराठो नोकर, क्यांकथी म्हारा माटे चहाना एक-बे प्याला सवार सांझ लावीने आपी देतो हतो, तेथी म्हारा प्राण टकी रह्या हता. धीमे धीमे ताव तो उतर्यो परंतु औषधादि उपचार अने पोषणात्मक आहारना अभावे शरीर तद्दन शुष्क थई, मस्तिष्क पण शुष्क थई गयु; अने हुं जाणे म्हारा मन अने शरीर तंत्र उपरनो काबू गुमावी बेठो होउं तेवी स्थितिमा मूकाई गयो. पछीथी मुंबई-घाटकोपरना बेक परिचित स्नेही जनोने तेनी खबर पडी. पंडितजी सुखलालजी, जे ते वखते आगरामा हता तेमने पण खबर पडी. एटले एक-बे स्नेही जनो परिचर्या माटे आवी पहोंच्या. प्रवर्तकजी महाराजने समाचार मळता ते पण बहु चिंतित थया अने तेमणे पण पोताना परिचित श्रावक जनोने म्हारी योग्य परिचर्या थाय तेवी खास सूचनाओ मोकलावी. पूनामा योग्य परिचर्या थाय तेवु न जणायाथी घाटकोपरवाळा सेठ परमानंद रतनजीए पोताना उत्साह अने सेकभावने वश थई, म्हने गाडीमा बेसाडी पूनाथी घाटकोपर पोताना मकाने लई आव्या. केटलाक सारा डॉक्टरो अने वैद्योने बतावी म्हारो योग्य औषधोपचार करवामां आव्यो अने ए रीते वेक महिनामा हुँ काईक स्वस्थचित्त थयो. पछी म्हारी इच्छाने. अनुसरी म्हने फरी पाछो पूना पहोंचाडी देवामां आव्यो. हुं त्यां पाछो म्हारा पूर्वनियोजित कामे वळग्यो.
पूनाना प्रगतिपरायण वातावरणे म्हारा मन उपर अनेक प्रकारनी असरो निपजाववा मांडी. जे स्थितिमा हुं हतो ते स्थिति तो म्हने संतोषजनक न्होती ज लागती. समाजसेवा, साहित्यसेवा अने देशसेवाना अनेक नवा नवा तरंगो अने विकल्पो मनमा उत्पन्न थयां करता हता. पूनामां ,रहेता रहेता म्हने वीजा घणा विद्वानो, देशनेताओ अने समाजसेवकोना परिचयनो लाभ मळतो गयो. जैन समाजना पण केटलाक खास आगेवान धनिको तेम ज विचारशील सज्जनोनो परिचय वधती रह्यो. जैन समाजनी सौथी वधारे क्रांतिकारी व्यक्ति स्व० सेठीजी अर्जुनलालजीनो पण म्हने त्यां घनिष्ठ समागम थयो अने तेमनी साथे धार्मिक, सामाजिक अने राजनैतिक विचारोनो खूब ज विनिमय थतो रह्यो. जैन समाजनी व्यापक जडता अने देशकाल-पराङ्मुख प्रवृत्ति जोई जोईने मन खिन्न थयां करतुं हतुं. शुं करवाथी जैन समाजनी प्रगति थाय अने जैन धर्म वधारे लोकोपकारक बने तेनी नाना प्रकारनी कल्पनाओ आव्यां करती हती. म्हारी आन्तरिक चित्तवृत्ति विरक्तिने चाहती हती के अन्यान्य प्रकारनी कोई आसक्तिओने इच्छती हती-एनी पण म्हने विविध तर्कणाओ थयां करती हती. यौवनसुलभ केटलाक मनोविकारो पण अन्तरना पडदा पाछळ क्यारेक' क्यारेक डोकियुं करी जता हता. परिणामे म्हारं मन कोईक नूतन मार्गे प्रयाण करवा, नूतन क्षेत्रमा प्रवेशीने कार्य करवा अने नूतन प्रकारना जीवननो अनुभव लेवा माटे वधारे ने वधारे उत्सुकः अवा लाग्यु. धीजी तरफथी जैन साहित्य, जैन इतिहास अने जैन तत्त्वज्ञाननां अध्ययन-अवलोकन