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मुनिवर श्रीचतुरविजयजी - स्मरण सुमनांजलि
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यजी महाराज कर रहे थे। मैंने यह सब हाल सिंघीजीको लिख भेजा और सूचित किया कि यदि उनकी इच्छा हो तो इस भण्डारके रक्षणकार्य में कुछ मदद देने योग्य है । इसके उत्तरमें उन्होंने ५०० रू. के नोट भेजे जो मैंने श्रीचतुरविजयजी महाराजको ज्ञानोद्धार कार्य में समर्पण कर दिये ।”
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सिंघी जैन ग्रन्थमाळानं काम हाथमां लीधा पछी म्हारे अवार - नवार पाटण जवानो प्रसंग उपस्थित थतो अने त्यां हुं ए पूज्योना सान्निध्यमां रहीने म्हारुं काम सिद्ध करतो. प्रसंग विशेषो उपर एमना प्रमुखपणानीचे म्हारां व्याख्यानो विगेरे पण थतां.
पू० प्रवर्तकजी महाराज विशेष वृद्ध थया हता, विहारादिनी प्रवृत्ति तेमना माटे अशक्य बनी हती, तेथी तेओ त्यां पाटणमां ज हवे स्थिरवास करीने रह्या हता. श्री चतुरविजयजी महाराजनुं वय पण वधतुं जतुं हतुं अने तेमने पण वृद्धावस्थानी विशेष असर थती जती हती; छतां तेओ पोतानुं संशोधननुं अने संपादननुं कार्य अविरतभावे कर्ये जता हता. हवे श्री पुण्यविजयजी पण तेमना समकक्ष सहकार्य कर्ता थया हता. बने गुरु-शिष्योए 'वसुदेव हिण्डी' अने 'बृहत्कल्पसूत्र भाष्य - टीका' जेवा महान् ग्रन्थोना संशोधन - संपादननुं कार्य हाथमां लीधुं हतुं. अत्यार सुधीमां तेमणे एकला हाथे नाना - म्होटा ७०-८० संस्कृत, प्राकृत ग्रन्थो संपादित करी प्रकाशमां मूकी दीघा हता. तेमना अनुकरणरूपे बीजा पण केटलाय साधुओ पोत- पोताना नामनी जुदी जुदी ग्रन्थमाळाओ प्रकट करवानी स्पर्द्धा करवा प्रेराया. परंतु तेमना जेटली सफळता कोई पण न मेळवी शक्या. तेमनुं संपादन कार्य वधु चोक्कसाइ भरेलुं अने शुद्धिपूर्ण छे. तेओ बनतां सुधी संपाध ग्रन्थनी अनेक प्रतियो मेळवावा प्रयत्न करता अने ते उपरथी सारी प्रेसकॉपी करी - करावी, जुदी जुदी प्रतियो साथै पाठभेदादिने सरखावी, उपयोगी जणातां पाठान्तरोने टिप्पणीमां मूकी, सुवाच्य अने सुदृश्य रीते पुस्तको मुद्रित करवानी कळामां कुशळ हता. बीजा. वीजा साधुओ द्वारा थएला जाताना पुस्तकोना मुद्रणमां भाग्ये ज तेवी कुशळता दृष्टिगोचर थशे. तेमना संपादित ग्रन्थोमां 'सभाष्य - सटीक बृहत्कल्पसूत्र' तेमना परिश्रम, कौशल्य अने अध्ययनना एक चिरस्मारक तरीके लेखाशे.
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- प्रवतर्कजी महाराज तथा तेमना उपदेशथी पाटणमां सेठ हेमचन्द मोहनलाल नामना गृहस्थे पोताना पितानी पुण्यस्मृतिमां 'हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमन्दिर' नामनुं एक सुन्दर ज्ञानभवन तैयार कराव्यं जेमां पाटणना भिन्न भिन्न स्थानोमां रहेला मुख्य मुख्य ग्रन्थभंडारोने एकन गोठववामां आव्या छे. जैन ग्रन्थोना विशाल संग्रहनी दृष्टिए ए ज्ञानभंडार साराय भारतवर्षमां एकमेवाद्वितीय जेवो छे. जैन संप्रदाय सिवाय ब्राह्मण अने बौद्ध संप्रदायना पण केटलाक एवा विशिष्ट ग्रन्थो ए भण्डारोमां सुरक्षित रहा। छे जेमनी प्रतिलिपिओ, भारतमां अन्यत्र क्यांय उपलब्ध थती नथी. हस्तलिखित ग्रन्थोनी प्राचीनतानी दृष्टिए पण पाटणनो ए ग्रन्थसंग्रह अनन्य कोटिनो गणी शकाय तेवो छे.
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संवत् १९९५ ना चैत्रवदमां ( तिथि ३ ४ ५६ वा. ७. ८. ९ सन् १९३९) ए जैन ज्ञानमन्दिरनो उद्घाटन समारंभ करवामां आव्यो. ते प्रसंगे गुजराती साहित्य परिषद्ना उपक्रमे परिषद्ना प्रमुख अने गुजरातनी अस्मिताना अनन्य प्रतीक जेवा साक्षरवर श्रीयुत कनैयालाल