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रम् धातु को उब्भाव आदेश होता है। इसी उब्भाव से निष्पन्न हुआ है--उब्भाविय (सुरत, रतिक्रीडा)। इसी प्रकार ऊसलिय, ऊसुंभिय (उल्लसित) शब्द उल्लस् धात्वादेश द्वारा सिद्ध है ।' पच्चद्धार और पच्चोवणी -ये दोनों क्रियाशब्द हैं । पच्चुरिअ और पच्चोवणिअ इन्हीं क्रियाशब्दों से निष्पन्न हुए हैं।
कुछ धातुमूल शब्द एवं धातुएं स्वरूप की दृष्टि से तद्भव प्रतीत होती हैं, पर अर्थ की दृष्टि से पूर्णतया देशी हैं। जैसे
आसरिअ का अर्थ है—सम्मुख आया हुआ, न कि आश्रित । आलंकिय का अर्थ है—लंगड़ा, न कि अलंकृत । गुंज का अर्थ है-हंसना, न कि गूंजना ।।
हण का अर्थ है—सुनना, न कि हिंसा करना । प्रस्तुत कोश के संकलन की प्रक्रिया
अनेक स्थलों पर आगम तथा आगमेतर ग्रंथों के व्याख्याकारों ने यह 'देशीशब्द' है ऐमा निर्देश किया है। यह निर्देश विभिन्न रूपों में मिलता
पहकरो त्ति देशीशब्दोऽयं समूहवाची । पादाभरणं लोके पागडा इति प्रसिद्धा । कप्पट्ठ समयपरिभाषया बालक उच्यते । उत्तइओ त्ति देशीपदमेतद गर्वे वर्तते । इगमवि देशीपदं क्वापि प्रदेशार्थे वर्तते । अणोरपारम्मि देशयुक्त्या अपारे । अचियत्तं देशीवचनं अप्रीत्याभिधायकम् । उप्पित्थशब्दस्त्रस्तव्याकुलवाची देशीति क्वचित् । खोल्लं देशीशब्दत्वात् कोटरम् । लोकभाषायां अंबाडी इति प्रसिद्धा । चिचइ ति देशीवचनतः खचितमित्युच्यते । चोल्लकं देशीभाषया भक्तमुच्यते । जगारीशब्देन समयभाषया रब्बा भण्यते । णगारो देसीवयणेण पायपूरणे । चेल्ललकानि देशीवचनाद् देदीप्यमानानि । चुल्लशब्दो देश्यः क्षुल्लपर्यायः ।
चुक्कारशब्दो देश्यां शब्दवाची। १. प्राकृत व्याकरण, ४।२०२; देशीनाममाला, १११४१, १४२ वृत्ति । २ देशीनाममाला, ६।२४ वृत्ति ।
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