Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
View full book text
________________
[ ] (२४) श्रीयुत् सी. बी. राजवाडे एम. ए. बी. एस. सी. प्रोफेसर ऑफ पाली बरोडा कालेजका एक लेख "जैन धर्मनुं अध्ययन" जैन साहित्य संशोधक पुना भाग १ अंक १में छपा है उसमें से कुछ वाक्य उद्धृत ।
प्रोफेसर बेबर बुल्हर जेकोबी हॉरनळ भांडारकर ल्युयन राइस गॅरीनोट वगैरा विद्वानोए जैन धर्मना संबंधमां अंतःकरण पूर्वक अथाग परिश्रम लेई अनेक महत्त्वनी शोधो प्रगट करेली छे। जैन धर्म पूर्वना धर्मोमा पोतानो स्वतंत्र स्थान प्राप्त करतो जाय छे. जैन धर्म ते मात्र जैनोनेज नहीं परंतु तेमना सिवाय पाश्चात्य संशोधनना प्रत्येक विद्यार्थी अने खास करीने जो पौर्वात्य देशोना तुलनात्मक अभ्यासमा रस लेता होय तेमने तल्लीन करी नाखे एवो रसिक विषय छे.
(२५) डाक्टर F. OTTO SCHRADER, P. H. D. का एक लेख बुद्धिष्ट रिव्युना पुस्तक अंक १ मा प्रकट थयेला अहिंसा अने वनस्पति आहार शीर्षक लेख का गुजराती अनुवाद जैन साहित्य संशोधक अंक ४ में छपा है उसमें से कुछ वाक्य उद्धृत ।
अत्यारे अस्तीत्व धरावता धर्नामा जैन धर्म एक एवो धर्म के के जेमा अहिंसानो क्रम संपूर्ण छे ब्राह्मण धर्ममां पण घणां लांबा समय पच्छी सन्यासीनो माटे आ सुक्ष्मतर अहिंसा विदित थई अने श्राखरे वनस्पति अाहारना रुपमा ब्राह्मण जातिमा पण ते दाखील थई हती. कारण प छ के जैनोना धर्म तत्वोए जे लोक मत जीत्यो हतो तेनी असर सब्जड रीते वधवी जवी हती.
(२६) राजा शिवप्रसाद सतारेहिन्द ने अपने निर्माण किये हुये "भूगोल स्तामलक" में लिखा है कि दो-ढाई हजार वर्ष पहिले दुनियाका अधिक भाग जैन धर्मका उपासक था ।
(२७) पाश्चात्य विद्वान् रेवरेण्ड जे स्टीवेन्स साहेब लिखते हैं कि:
साफ प्रगट है कि भारतवर्षका अधःपतन जैनधर्म के अहिंसा सिद्धान्त के कारण नहीं हुआ था, बल्कि जब तक भारतवर्ष में जैनधर्म की प्रधानता रही थी, तब तक उसका इतिहास सुवर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य है । और भारतवर्ष के हास का मुख्य कारमा आपसी प्रतिस्पर्धामयी अनैक्यताहै । जिसकी नींव शङ्कराचार्य के जमाने से जमा दी गई थी।
जैनमित्र वर्ण २४ अङ्क ४० से (२८) पाश्चात्य विद्वान् मि० 'सर विलियम और हैमिल्टन ने मध्यस्थ विचारों के मंदिर का प्राधार जैनों के इस अपेक्षावाद को ही माना है। जैनमत में अपेक्षावाद का ही दूसरा नाम नयवाद है ।
(२९) डाक्टर टामसने जे. एच. नेलसन्स "साइन्टिफिक स्टडी ऑफ हिन्दु लो." नामक ग्रन्थ में लिखा है कि यह कहना काफी होगा कि जब कभी जैन धर्मका इतिहास बनकर तय्यार होगा तो हिन्दू कानूनके विद्यार्थी के लिये उसकी रचना बढ़ी महत्त्व की होगी, क्योंकि वह निःसंशय यह सिद्ध कर देगा कि जैनी हिन्दु नहीं हैं।
___ (३०) इम्पीरियल प्रेजीटियर ऑफ इंडिया व्हाल्यूम दो पृष्ट ५४ पर लिखा है कि कोई २ इतिहास. कार तो यह भी मानते हैं कि गोतम बुद्ध को महावीर स्वामी से ही ज्ञान प्राप्त हुआ था जो कुछ भी हो यह तो निर्विवाद स्वीकार ही है कि गोतम बुद्धने महावीर स्वामी के बाद शरीर त्याग किया, यह भी निर्विवाद सिद्ध ही है कि बौद्ध धर्म के संस्थापक गोतम बुद्ध के पहिले जैनियों के तेवीस तीर्थकर और होचुके थे ।
___ (३१) मिस्टर टी डब्लू गईस डेविड साहिब इनसाइक्लोपीडिया रिटेनिका व्हा. २९ नाम की पुस्तक में लिखा है, यह बात अब निश्चित है कि जैनमत बौद्धमत से निःसंदेह बहुत पुराना है और बुद्ध के समकालीन महावीर द्वारा पुनः संजीवित हुआ है.और यह बात भी भले प्रकार निश्चय है कि जैनमत के
Jain Education Internationa
rivate & Personal use on
www.jainelibrary.org