Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Manoharvijay
Publisher: Gyanopasak Samiti

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Page 19
________________ भावार्थ-जिनमें क्लेश का उत्पादक राग लेशमात्र भी नहीं है, जिनमें समता रूपी इन्धनों को जलाने हेतु दावानल जैसा द्वेष भी नहीं है, जिनमें सद् ज्ञान का(सम्यक ज्ञान का) आच्छादक, अशुद्धाचरणकारी मोह भी नहीं है और जो तीनों लोकों में (स्वर्गलोक, मृत्युलोक, पाताललोक अथवा ऊर्ध्वलोक, अधोलोक व तिर्यक लोक, अथवा भूः भुवः स्वः, में) प्रख्यात महिमा वाले हैं उन्हें महादेव कहते हैं। [१-२] यो वीतरागः सर्वज्ञो, यः शाश्वतसुखेश्वरः । क्लिष्टकर्मकलातीतः, सर्वथा निष्कलस्तथा ॥ ३॥ यः पूज्यः सर्वदेवानां, यो ध्येयः सर्वयोगिनाम् । यः स्रष्टा सर्वनीतीनां, महादेवः स उच्यते ॥ ४ ॥ युग्मम् भावार्थ-जो वीतराग हैं, जो सर्वज्ञ हैं, जो शाश्वत सुख के स्वामी हैं, जो घाती एवं अघाती कर्मों की पहुँच से परे एवं क्लेशकारी कर्म और कला अर्थात् कर्म धूलि से रहित हैं, जो सर्वथा शरीर रहित हैं, जो सर्व देवों के पूजनीय हैं, जो सर्व योगीजनों के ध्येय आराध्य देव हैं, जो सर्व नीति, नय एवं न्याय के सृजक हैं (प्रत्येक तीर्थङ्ककर भगवान अपनी-अपनी अपेक्षा से तीर्थ के सृजक होते हैं) उन्हें महादेव कहते हैं । [३-४] एवं सद्वृत्तयुक्त न, येन शास्त्रमुदाहृतम् । शिववम परं ज्योतिस्त्रिकोटीदोषवजितम् ॥५॥ भावार्थ-निष्कलंक आचरण वाले जिस देवेश ने मोक्षमार्ग में बढ़ने हेतु परम प्रकाश रूप तीनों ही कोटि अर्थात् विभाग में (प्रादि,

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