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परमानन्दरूपं तद्गीयतेऽन्यैर्विचक्षणः। इत्थं सकलकल्याणरूपत्वात्साम्प्रतं ह्यदा ॥८॥
भावार्थ--अन्य जैनेतर विद्वानों ने भी मोक्ष-सुख को परमानन्दरूप कहा है । इस प्रकार समस्त कल्याणरूप होने से वह ही साम्प्रत अर्थात् उचित इष्ट है ।-[4].
संवेद्यं योगिनामेतदन्येषां श्रुतिगोचरः। उपमाभावतो व्यक्तमभिधातुं न शक्यते
भावार्थ--मात्र केवलज्ञानी महात्माओं को ही मोक्षसुख अनुभवगम्य है, जबकि दूसरों के लिये तो श्रवणगम्य है, पुनः विश्व में एक भी उपमा ऐसी नहीं है जिसे देकर उसे स्पष्ट रीति से कहा जा सके ।-[६]:
प्रष्टकाख्यं प्रकरणं कृत्वा यत्पुण्यमजितम । 'विरहा'त्ते न पापस्य भवन्तु सुखिनो जनाः ॥१०॥
भावार्थ-अष्टक नामक इस प्रकरण की रचना करके मैंने जो पुण्य उपाजित किया है, उस पुण्य द्वारा आगे होने वाले पाप के 'विरह अर्थात् वियोग या विनाश से समस्त मनुष्य सुखी बनें ।-[१०].
इति अष्टक प्रकरण एवं हिन्दी मावार्थ