Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Manoharvijay
Publisher: Gyanopasak Samiti

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Page 29
________________ इष्टापूत न मोक्षाङ्ग सकामस्योपरिणतम् । प्रकामस्य पुनर्योक्ता सैव न्याय्याग्निकारिका ॥८॥ भावार्थ-'इष्टापूर्त' अर्थात् इष्ट एवं पूर्त ये दो प्रकार के दान सकामी के होने के कारण मोक्ष के अंग नहीं है, चूकि सकामी का यानी अभ्युदय की इच्छावाले का है, ऐसा कहा गया है। निष्कामी यानी कामना वांछा या इच्छा रहित सत्पुरुषों के लिये तो ऊपर वर्णित भाव अग्नि- . कारिका ही समीचीन है, मोक्षके अंग रूप हैं-[८] भिक्षाष्टकम् सर्वसम्पत्करी चैका पौरुषघ्नी तथाऽपरा । वृत्तिभिक्षा च तत्वज्ञ रिति भिक्षा विधोदिता ॥१॥ भावार्थ--तत्वज्ञ महापुरुषों ने भिक्षा तीन प्रकार की कही है; (१) सर्वसंपत्करी, (२) पौरुषघ्नी एवं (३) वृत्तिभिक्षा--[१] यतिानादियुक्तो यो गुर्वाज्ञायां व्यवस्थितः । सदानारम्भिरणस्तस्य सर्वसम्पत्करी मता ॥२॥ वृद्धाद्यर्थमसङ्गस्य भ्रमरोपमयाटतः। गृहिदेहोपकाराय विहितेति शुभाशयात् ॥ ३ ॥ युग्मम

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