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भावार्थ--प्रत्याख्यान-(पच्चक्खाण) यानी त्याग दो प्रकार का माना गया है:
(१) द्रव्य प्रत्याख्यान (२) भाव प्रत्याख्यान ।
पहला द्रव्य प्रत्याख्यान किसी प्रकार की अपेक्षा यानी अविधि, अपरिणाम , राग-द्वेष आदि कारणों से किया गया होता है; जबकि दूसरा--भावप्रत्याख्यान प्रथम से सर्वथा उलटा अर्थात् अपेक्षादि से रहित मात्र त्याग-बुद्धि से ही होता है [१].
मपेक्षा चाविधिश्चैवापरिणामस्तथैव च । प्रत्याख्यानस्य विघ्नास्तु वीर्याभावस्तथापरः ॥२॥
भावार्थ--अपेक्षा, अविधि, अपरिणाम अर्थात् अश्रद्धा तथा वीर्या भाव अर्थात् परिणाम होने पर भी शक्ति अर्थात् उल्लास अथवा प्रयत्न का अभाव, ये सभी भाव-प्रत्याख्यान के विघ्न हैं क्योंकि अपेक्षा आदि से युक्त सभी प्रत्याख्यान द्रव्यप्रत्याख्यान रूप होते हैं-[२]
लव्याद्यपेक्षया ह्येतद्भव्यानामपि क्वचित् । श्रूयते न तत्किञ्चिदित्यपेक्षाऽत्र निन्दिता ॥३॥
भावार्थ-लब्धि अर्थात् आर्थिक लाभ आदि का अपेक्षापूर्वक प्रत्याख्यान तो अभव्यों को भी कभी-कभी हो जाता है, ऐसा आगम वचन है, पर वह तुच्छ एवं अकिंचित्कर है। इस कारण से प्रेत्याख्यान के समय किसी प्रकार की अपेक्षा अर्थात् आकांक्षा निन्दनीय है--[३.]
यथैवाविधिना लोके न विद्याग्रहणादि यत् । विपर्ययफलत्वेन तथेदमपि भाव्यताम् ॥४॥