Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Manoharvijay
Publisher: Gyanopasak Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 108
________________ होने से वह अधिक इन्धन न बटोर पाई। शरीर के स्वस्थ होने से सारे कार्य अच्छे होते हैं । एक तो दासी की वृद्ध अवस्था थी। साथसाथ ज्वर के शरीर में घर करने से शरीर की शक्ति भी क्षीण हो गयी थी। अतः वृद्धा जिस थोड़े से इन्धन, को बटोर पाई थी, वह ले आई । थोड़ा इन्धन देखकर सेठानी कुद्ध हो गई । सेठानी ने कहा-- इस घर में जितना खाती हो इतना इन्धन तो कम से कम अवश्य लाओ। मैं तीन दिन से देख रही हूँ तुम दिन प्रति दिन काम नहीं कर रही हो । यह नहीं चल सकता, तुमको अपना पेट भरने जितना काम जरूर करना पड़ेगा । जाओ ! और इन्धन ले आओ। वृद्धा दासी ने अपने ज्वर का समाचार सेठानी से नहीं कहा था। दासी पुन: जंगल में गई पहले से कुछ अधिक इन्धन इकट्ठा करके ले आई। इतना इन्धन देखकर भी सेठानी पुनः गुस्सा होकर चिल्लाई 'अरे बुढ़िया ! इतने इन्धन में तो तेरे पैर भी नहीं जलेंगे । इतने से क्या होगा ? विचारी वृद्धा सेठानी का रूप देखकर वापिस जंगल में गई और ज्यादा से ज्यादा इन्धन की गठरी बांधकर उठाने लगी। पर अब बुढ़िया के शरीर में ताकत कहाँ थी ? बेचारी ज्वर-पीड़ित भूखे पेट और नंगे पैर से जंगल का तीसरा चक्कर काट रही थी। बुढ़िया ने पास-पास नजर दौड़ाई तो दूर कोई मुसाफिर दीखा । पूरा जोर लगाकर बुढ़िया ने आवाज देकर मुसाफिर को बुलाकर कहा "भैया जरा इन्धन की गठरी सिर पर चढ़वा दो तो उपकार होगा।' मुसाफिर ने इन्धन की गठरी वृद्धा के सिरपर चढ़ा दी। अब बुढिया एक एक कदम रखती हैं, तो नजरों में लाल पीले रंग दिखते हैं ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 106 107 108 109 110 111 112 113 114