Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Manoharvijay
Publisher: Gyanopasak Samiti

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Page 107
________________ भावार्थ-सूर्योदय होते ही सारा संसार प्रकाश से भर जाता है। प्रायः संसार के सभी प्राणियों के चक्षुओं में स्पष्ट देखने की क्षमता आ जाती है, किन्तु क्लिष्ट-कठोर कर्म वाले उल्लू के लिए तो सूर्य का प्रकाश स्वाभाविक रीति से ही अंधकार का कारण बनता है । उसी के अनुसार परमतारक जिनेश्वरों को देशना से समस्त भव्य प्राणियों को सम्यज्ज्ञान प्रादि का अलभ्य लाभ होता है, किन्तु अभव्यों को सज्ज्ञान की प्राप्ति का अभाव ही रहता है। जैसे उल्लू का स्वभाव उजाले को अन्धेरे रूप में देखने का है, वैसे ही प्रभव्य के लिये भी सज्ज्ञान रूप प्रकाश अंधकारमय बन जाता है।-[७]. इयं च नियमाज्ज्ञ या तथानन्दाय देहिनाम् । तदात्वे वर्तमानेऽपि भव्यानां शुद्धचेतसाम् ॥ ८ ॥ भावार्थ--उस काल में अर्थात् तीर्थङ्कर भगवान के समय में तथा वर्तमान काल में भी शुद्ध चितवाले भव्यजीवों को इस देश के वरिण को वृद्धा दासी की भांति अवश्य आनन्द होता है ऐसा अवश्य मानो ! वणिक दासी को घटना इस प्रकार है-- ___एक गांव में एक वणिक् था। उसके घर एक वृद्धा दासी उस वणिक के पिता के समय से कार्य करती थी। दासी विश्वासपात एवं ईमानदार थी। इस दासी को जंगल से लकड़ी लाने का काम सौंपा गया था। अपने कर्तव्य के अनुसार दासी हमेशा लकड़ी लाती थी। वणिक् पत्नी कुछ कर्कशा एवं कंजूस थी। एकबार वृद्धा दासी लकड़ी लेने हेतु जंगल में गई। पर तीन दिनों से ज्वराकान्त

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