Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Manoharvijay
Publisher: Gyanopasak Samiti

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Page 109
________________ बोझ असह्य हो रहा है। पर पेट के लिये सब कुछ कर रही है । मारे भूख के पेट पाताल में पहुंच रहा है। शरीर ज्वर की गरमी से मल रहा है । ऐसी अवस्था में बुढ़िया एक एक कदम तय कर रही ह । इतनी देर में बुढ़िया ऐसे स्थान पर आई कि जहां तीर्थङ्कर भगवान का समवसरण विरचित था। भगवान मालकोश राग में वेशना फरमा रहे थे। बारह पर्षदाएँ जिनवाणी सुनने में एकान थीं। जन्मजात बैरी पशु भी भगवान की वाणी सुनने में अपने बैर को भूल गये थे एवं अपने बैरियों के पास भाइयों की भांति बैठ कर जिनवाणी सुन रहे थे। बुढ़िया के कानों में भी प्रेभुवाणी पड़ी। उस वाणी के शब्दों में ऐसी कमाल की ताकत थी, ऐसा अमृत था कि-बुढ़िया का सारा श्रम दूर हो गया, मानों बुढ़िया कानों से सुधापान कर रही थी। उस वाणी-सुधा के प्रभाव से बुढ़िया का सारा रोग चला गया। बुढिया मां सिरपर बोझ है इसको तो भूल गई और वाणी सुनने में ऐसी एकतार एवं चट्टान की तरह अडोल बन गई कि मानो कोई रोग शरीर में न हो। उस समय किसी ने भगवान से प्रश्न किया— 'हे भगवन् यह बुढ़िया इसी प्रकार बाझ माथे पर लिए कब तक जिनवाणी सुन सकेगी? भमवान ने फरमाया 'हे महानुभाव ! यदि तीर्थङ्कर लगातार छह मास तक देशना देते रहें तो भी इस बुढ़िया को न भूख लगेगी न प्यास, और यह बुढ़िया यदि यों की यों छह मास तक देशना सुनेगी तो भी नहीं थकेगी। इतनी प्रचण्ड एवं कमाल की ताकत जिनवाणी में है।

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