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भावार्थ -- जीवों पर दया, वैराग्य, विधिपूर्वक गुरुपूजन और विशुद्ध शीलवृत्ति ये सभी पुण्यानुबन्धी पुण्य देने वाले हैं -- [5].
पुण्यानुबन्धिपुण्यप्रधानफलाष्टकम्
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प्रकर्ष सम्प्राप्ता द्विज्ञ ेयं सदोचित्यप्रवृत्त्या
अतः
तीर्थंकृत्त्वं
फलमुत्तमम् । मोक्षसाधकम्
॥ १ ॥
भावार्थ — उत्कृष्ट प्रकार के पुण्यानुबन्धि पुण्य में से हमेशा सुन्दर औचित्य वाली प्रवृत्ति कराने के कारण मोक्षसाधक एवं तीनों जगत के पूज्यत्व का प्रधान कारण 'तीर्थंकरत्व' नाम का सर्वोत्तम फल मिलता है, ऐसा समझें - [१] .
सदौचित्यप्रवृत्तिश्च गर्भादारभ्य तस्य यत् ।
तत्राप्यभिग्रहो न्याय्यः श्रूयते हि जगद्गुरोः ॥ २ ॥ पित्रुद्वेगनिरासाय महतां स्थितिसिद्धये । इष्टकार्य समृद्ध्यर्थमेवम्भूतो
जिनागमे
॥ ३ ॥
भावार्थ - - क्योंकि गर्भ की स्थिति से ही जगद्गुरु तीर्थ कर भगवान श्री महावीर स्वामी में परमात्मा की ' यथोचित प्रवृत्ति के दर्शन होते हैं, अत: उस परमतारक लोकोत्तम परमपुरुष का अभिग्रह अत्यन्त न्यायसंगत अर्थात् उत्तम प्रकार का है, ऐसा लोकों में भी सुना जाता है ।