Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Manoharvijay
Publisher: Gyanopasak Samiti

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Page 99
________________ सामायिकस्वरूपनिरूपणाष्टकम्। [२६] सामायिकं च मोक्षाङ्ग परं सर्वज्ञभाषितम् । वासीचन्दनकल्पानामुक्तमेतन्महात्मनाम् ॥१॥ भावार्थ-चन्दन को काटो तो भी वह कुल्हाड़ी के मुह अर्थात् धार को सुवासित करेगा। उसे घिसो, तो भी वह सुगंध बहायेगा। उसे जलानो तो भी वह सुगंध ही बिखेरेगा, चंदन का स्वभाव ही है शीतल बनाना एवं सुगन्ध फैलाना । प्रत्येक दशा में प्रत्येक के लिए सुगन्ध एवं शीतलता के वरदान देना चन्दन का धर्म है । परमोपकारी सर्वज्ञ ने फरमाया है कि-बांस के प्रति भी सुगन्ध छोड़ने वाले चंदन के वृक्ष के समान महापुरुषों का सामायिक नामक चारित्र ही मोक्ष का परम अंग अर्थात् अद्वितीय कारण है-[१]. निरवद्यमिदं ज्ञयमेकान्तेनैवतत्त्वतः । कुशलाशयरूपत्वात्सर्वयोगविशुद्धितः ॥२॥ भावार्थ--यह सामायिक चारित्र शुभ परिणाम रूप एवं मन-वचन पौर कायारूप तीनों योगों की शुद्धि स्वरूप होता है। इस कारण इसे सचमुच सर्गथा पापरहित अर्थात् परम पवित्र निरवद्य जाने-[२]. यत्पुनः कुशलं चित्तं लोकदृष्ट्या व्यवस्थितम् । तत्तथौदार्ययोगेऽपि चिन्त्यमानं न तादृशम् ॥३॥

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