Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Manoharvijay
Publisher: Gyanopasak Samiti

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Page 100
________________ ८३ भावार्थ -- परन्तु लौकिक दृष्टि से जो कुशलचित्त रूप से प्रतिष्ठित है, वह लौकिक उदारता वाला हो तो भी उसे सामायिक जैसा न समझें- [ ३ ]. मय्येव निपतत्वे तज्जगदुश्चरितं यथा । मत्सुचरितयोगाच्च मुक्तिः स्यात्सर्वदेहिनाम् 118 11 भावार्थ -- लौकिक प्रौदार्य का प्रमारण देते हुए ग्रन्थकार आचार्य श्री कहते हैं-जिस प्रकार बुद्ध ने कहा है “विश्व - प्राणियों का यह दुश्चरित मेरे में आकर गिरे जिससे मेरे सुचरित्र के योग से समस्त प्राणियों को मोक्ष मिले ।" -- [ ४ ]. उक्त असंभव परस्पर विरोधी लौकिक औदार्य के प्रमाण रूप बुद्ध के कथन का अनौचित्य बताते हैं- असम्भवीदं यद्वस्तु बुद्धानां निवृतिश्रुते । । सम्भवित्वे त्वियं न स्यात्तत्रैकस्याप्यनिर्वृ तो ॥ ५ ॥ भावार्थ – 'यह वस्तु असंभव है, क्योंकि 'बुद्ध मोक्ष में गये हैं' ऐसा उनके आगम कहते हैं । पर कदाचित् उसे संभव मान भी लें, तो जब तक संसार में एक भी प्रारणी का मोक्ष बाकी रहेगा तब तक बुद्ध का मोक्ष नहीं होगा । विश्वप्राणियों के दुश्चरित्र के अन्त तक बुद्ध मोक्ष में जायँ यह भी बुद्ध के वचन के अनुसार संभव नहीं दीखता । साथ साथ बौद्धों के आगम कहते हैं - 'बुद्ध मोक्ष गये ।' यहाँ बुद्ध-वचन एवं बुद्ध - आगम दोनों ही एक दूसरे के विरोधी दोखते हैं । इन दोनों में किसके वचन को यथार्थ मानें, यह भी एक समस्या है । -- [५] .

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