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भावार्थ - और यदि मोह आदि का उद्रेक (उभाड़) न हो, तो भाव मलिमता रूप स्व-मत - श्राग्रह कभी भी पैदा नहीं होता, इसलिये मोह का ह्रास करना चाहिए और मोह के ह्रास का कारण है गुणीजनों की अधीनता में रहना -- [४] .
अत एवागमज्ञोऽपि दीक्षादानादिषु
क्षमाश्रमरणहस्तेनेत्याह
सर्वेषु
ध्रुवम् ।
कर्म सु
॥ ५ ॥
भावार्थ - इन्हीं कारणों से श्रागमज्ञ साधु महात्माओं का भी मन्तव्य है कि 'दीक्षा प्रदान आदि सभी कार्य अपने गुरुदेव के हाथों से ही करवाने चाहिये -- [ ५ ] .
इदं तु यस्य नास्त्येव स नोपायेऽपि वर्तते । भावशुद्धेः स्वपरयोर्गुणाद्यज्ञस्य सा कुतः
॥ ६ ॥
भावार्थ-- स्व-पर के गुण-अवगुणों को नहीं जानने वाले जिस मनुष्य में गुणीजनों की अधीनता नहीं है, वह मनुष्य गुणीजनों की अधीनता रूप -- भावशुद्धि के उपाय को भी अभी तक नहीं जान पाया है । वह भावशुद्धि को तो कहाँ से पायेगा अर्थात् भावशुद्धि नहीं पा सकेगा -- [६].
तस्मादासन्नभव्यस्य प्रकृत्या शुद्धचेतसः ।
स्थानमानान्तरज्ञस्य
गुणवद्बहुमानिनः
नौचित्येन प्रवृत्तस्य सर्वत्रागमनिष्ठस्य
कुग्रहत्यागतो भृशम् । भावशुद्धिर्यथोदिता
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