Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Manoharvijay
Publisher: Gyanopasak Samiti

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Page 80
________________ उन्नति करे पर न बने तो कम से कम शासन की अपभ्राजना को तो अवश्य टालना सर्वथा हितकर है-[५]. अस्माच्छासनमालिन्याज्जातौ जाती विहितम । प्रधानभावादात्मानं सदा दूरीकरोत्यलम् ॥६॥ भावार्थ--शासन की हानि करने के कारण मनुष्य भव-भव में निन्दित अपनी प्रात्मा को उन्नत भाव से हमेशा दूर-दूर रखता है-[६. कर्तव्या चोन्नतिः सत्यां शक्ताविह नियोगतः । प्रवन्ध्यं बीजमेषा यत्तत्त्वतः सर्वसम्पदाम् ॥७॥ भावार्थ-अपनी शक्ति हो तो शासन की प्रभावना प्रवश्य करनी चाहिये, क्योंकि वास्तविक दृष्टि से शासन प्रभावना सर्व प्रकार की सम्पत्तियों का प्रवन्ध्य--फलप्रद बीज है। अपनी शक्ति की उपेक्षा नहीं करनी चाहिये, और शक्ति का पूरा स्रोत शासन प्रभावना की प्रोर बहाना चाहिए। शासनप्रभावना मोक्षलक्ष्मी का ऐसा सर्वोत्तम उपाय है कि जिसकी कोई उपमा कहीं भी नहीं मिल सकती-[७]. प्रत उन्नतिमाप्नोति जातो जातौ हितोदयाम् । क्षयं नयति मालिन्यं नियमात्सर्ववस्तुषु ॥८॥ भावार्य-जबकि शासनप्रभावना द्वारा मनुष्य प्रत्येक भव में उत्तरोत्तर कल्याणदायिनी उन्नति को पाता है, तब शासन का मालिन्य मनुष्य को सभी प्रकार से सभी स्थितियों में अवश्यमेव नाश की ओर ले जाने वाला है। इसका सारांश यह है कि-शासन की प्रभावना

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