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परम प्रकाश को प्राप्त करवाने वाली है एवं शासन की अपभ्राजना घोर, निबिड मयंकर अंधकार में भटकाने वाली और डुबाने वाली है। अतः शासन में उद्यत तथा शासन-मलिनता से विरत बनो-[८].
पुण्यानुबन्धिपुण्यादिविवरणाष्टकम
[२४॥ गेहादगेहान्तरं कश्चिच्छोभनादधिकं नरः । याति यद्वत्सुधण तद्वदेव भवाद्भवम ॥१॥
भावार्थ--जैसे कोई मनुष्य एक सुन्दर घर में से-दूसरे सुन्दरतर घर में जाता है, उसी प्रकार से मनुष्य शुभ धर्म द्वारा वर्तमान शुभ भव में से दूसरे शुभतर भव में जाता है--[१].
गेहादगेहान्तरं करिछोभनादितरन्नरः । याति यद्वदसद्धतिद्वदेव भवाद्भवम, ॥२॥
भावार्थ-जिस प्रकार से कोई मनुष्य सुन्दर घर में से गन्दे घर में जाता है, उसी प्रकार से मनुष्य अधर्म द्वारा शुभ भव में से अशुभ भव में जाता है--[२].
गेहादगेहान्तरं कश्चिदशुभादधिकं नरः। याति यद्वन्महापापात्तद्वदेव भवाद्भवम ॥३॥