Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Manoharvijay
Publisher: Gyanopasak Samiti

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Page 78
________________ भावार्थ--इससे निकट भविष्य में ही मोक्ष में गमन करने वाले, स्वभाव से ही शुद्ध चित्त वाले, स्व-पर के स्थान एवं मान के भेद को जानने वाले, गुणीजनों का बहुमान करने वाले, यथोचित प्रवृत्ति करने वाले--और कदाग्रह के पूर्णतः त्यागी होने के कारण सर्व प्रसंगों में अत्यन्त प्रागमनिष्ठ मनुष्य की भावशुद्धि आगमानुसारिणी बनती है--[७-८]. शासनमालिन्यनिषेधाष्टकम [२३] यः शासनस्य मालिन्येऽनाभोगेनापि वर्तते । स तन्मिथ्यात्वहेतुत्वादन्येषां प्राणिनां ध्रुवम् बध्नात्यपि तदेवालं परं संसारकारणम् । विपाकदारुणं घोरं सर्वानर्थविवर्धनम् ॥१॥ ॥२॥ भावार्थ--जो मनुष्य अनजान में भी शासन का मालिन्य (अवनतिअपभ्राजना) करता है वह मनुष्य, दूसरे प्राणियों के शासन विषयक मिथ्यात्व का कारणभूत होने से स्वयं भी सभी अनर्थों को बढ़ाने वाली, 'मिथ्यात्व दुःखद फलप्रद, संसार वृद्धि के कारण रूप तीव्र तथा घोर "भयंकर, मोहनीय कर्म को प्रचुर मात्रा में बांधता है-12-२].

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