Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Manoharvijay
Publisher: Gyanopasak Samiti

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Page 68
________________ उसका प्रत्युत्तर निम्न-सूचित श्लोक में देते हैं कि निवृत्ति को सार्थक या उचित सिद्ध करने जायें, तो मांस-भक्षण सदोष है, ऐसा सिद्ध होत है, जो तुम्हें इष्ट नहीं है। पारिवाज्यं निवृत्तिश्चेद्यस्तदप्रतिपत्तितः । फलाभावः स एवाऽस्य, दोषो निर्दोषतव न ॥८॥ भावार्थ-पहली बात तो यह है कि शास्त्रविहित हिंसा का त्याग करने के बाद ही परिव्राजक होते हैं। इस कारण से परिव्राजकता स्वयं ही मांस भक्षण आदि का त्याग रूप है, ऐसा जो तुम्हारा कथन हो तो परिव्राजकता के अंगीकार के कारण होनेवाला उसके फल का अभाव ही विहित मांसभक्षण का दोष है, उसकी निर्दोषता है ही नहीं-[८]. मद्यपानदूषणाक्रम [१६] मद्यं पुनः प्रमादाङ्ग तथा सच्चित्तनाशनम् । सन्धानदोषवत्तत्र न दोष इति साहसम् ॥१॥ भावार्थ--पुनः मद्य (शराब) प्रमाद का कारण है, शुभ चित्त का विनाशक है, अनेक चीजों के मिश्रण के कारण, उत्पन्न होने वाली

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