Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Manoharvijay
Publisher: Gyanopasak Samiti

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Page 73
________________ ५६ भावार्थ- 'मैथुन में दोष नहीं है' यह कथन हितकारी नहीं है, क्योंकि वैसा कथन 'मथुन त्याज्य है, ऐसी बुद्धि पैदा न होने देने के कारण मैथुन की प्रवृत्ति में हेतुभूत बनता है-[s]. प्राणिनां बाधकं चैतच्छास्त्रे गीतं महर्षिभिः । नलिकात प्तणकप्रवेशज्ञाततस्तथा ॥७॥ भावार्थ-श्री महावीर स्वामी आदि तीर्थंकर महर्षियों ने शास्त्रों में फरमाया है कि जैसे मांस की अथवा अन्य किसी की नलिका में आग से तप्त लोहे की शलाका का प्रवेश नलिका के जीवों का विघातक होता है वैसे ही मैथुन सेवन भी प्राणियों का बाधक अर्थात् विघातक होता है--[७]. मूलं चैतदधर्मस्य भवभावप्रवर्धनम् । तस्माद्विषान्नवत्त्याज्यमिदं मृत्युम निच्छता ॥८॥ भावार्थ--मैथुन अधर्म की जड़ है, तथा संसार भाव बढ़ाने वाला है, अतः मरण के अनिच्छुक मोक्षाभिलाषियों को विषमिश्रित अन्न की भांति मैथुन को छोड़ देना चाहिये [८]. सूक्ष्मबुद्धयाश्रयणाष्टकम [२१] सूक्ष्मबुद्धया सदा ज्ञ यो धर्मों धर्माथि भिनंरः । अन्यथा धर्मबुद्ध्यैव तद्विघातः प्रसज्यते ॥१॥

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