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________________ २२ भावार्थ--प्रत्याख्यान-(पच्चक्खाण) यानी त्याग दो प्रकार का माना गया है: (१) द्रव्य प्रत्याख्यान (२) भाव प्रत्याख्यान । पहला द्रव्य प्रत्याख्यान किसी प्रकार की अपेक्षा यानी अविधि, अपरिणाम , राग-द्वेष आदि कारणों से किया गया होता है; जबकि दूसरा--भावप्रत्याख्यान प्रथम से सर्वथा उलटा अर्थात् अपेक्षादि से रहित मात्र त्याग-बुद्धि से ही होता है [१]. मपेक्षा चाविधिश्चैवापरिणामस्तथैव च । प्रत्याख्यानस्य विघ्नास्तु वीर्याभावस्तथापरः ॥२॥ भावार्थ--अपेक्षा, अविधि, अपरिणाम अर्थात् अश्रद्धा तथा वीर्या भाव अर्थात् परिणाम होने पर भी शक्ति अर्थात् उल्लास अथवा प्रयत्न का अभाव, ये सभी भाव-प्रत्याख्यान के विघ्न हैं क्योंकि अपेक्षा आदि से युक्त सभी प्रत्याख्यान द्रव्यप्रत्याख्यान रूप होते हैं-[२] लव्याद्यपेक्षया ह्येतद्भव्यानामपि क्वचित् । श्रूयते न तत्किञ्चिदित्यपेक्षाऽत्र निन्दिता ॥३॥ भावार्थ-लब्धि अर्थात् आर्थिक लाभ आदि का अपेक्षापूर्वक प्रत्याख्यान तो अभव्यों को भी कभी-कभी हो जाता है, ऐसा आगम वचन है, पर वह तुच्छ एवं अकिंचित्कर है। इस कारण से प्रेत्याख्यान के समय किसी प्रकार की अपेक्षा अर्थात् आकांक्षा निन्दनीय है--[३.] यथैवाविधिना लोके न विद्याग्रहणादि यत् । विपर्ययफलत्वेन तथेदमपि भाव्यताम् ॥४॥
SR No.022134
Book TitleAshtak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharvijay
PublisherGyanopasak Samiti
Publication Year1973
Total Pages114
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size6 MB
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