Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Manoharvijay
Publisher: Gyanopasak Samiti

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Page 46
________________ ॥८ ॥ (बाहरी) इच्छा आदि से बद्ध अर्थात् जकड़ी हुई बहुत सी आत्माएँ इच्छाधीन (परवश) हो जाने के कारण दारुण (भयंकर) दुःख भरे संसार में दुःखपूर्वक भटकती हैं ऐसा जानकर संसार के त्याग की क्रिया तथा उसके सर्वथा त्याग को तत्त्वज्ञ पुरुषों ने सद्ज्ञान युक्त वैराग्य कहा है -[६-७]. एतत्तत्त्वपरिज्ञानान्नियमेनोपजायते । यतोऽतः साधनं सिद्ध रेतदेवोदितं जिनः भावार्थ- क्योंकि यह तीसरा सद्ज्ञानयुक्त वैराग्य तत्त्वज्ञान द्वारा नियम से उत्पन्न हो जाता है इसलिए भगवान श्री जिनेश्वर देवों ने इसी वैराग्य को मोक्ष का साधन कहा है। प्रथम विषय प्रतिभासरूप वैराग्य इष्टवियोग एवं अनिष्ट योग जन्य दुःख से भरा है, दूसरा मोहगभित वैराग्य संसार की असारता पर खड़ा है । आखिर कार प्रथम एवं दूसरा वैराग्य जब तक तत्त्वज्ञानज-य ज्ञानभित तृतीय वैराग्य में परिणत नहीं होते तब तक वे दोनों वैराग्य कार्यसिद्धि के कारण नहीं हैं । मात्र ज्ञानभित वैराग्य ही मोक्ष का साधन इसीलिए कहा गया है कि वह दृढ़तापूर्वक तत्त्वज्ञान पर निर्भर है-[८]. तपोऽष्टकम् [११] दुःखात्मकं तपः केचिन्मन्यन्ते तन्न युक्तिमत् । - कर्मोदयस्वरूपत्वाद् बलीवादिदुःखवत् ॥१॥

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