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भावार्थ--और बौद्ध शास्त्र में अहिंसा का उल्लेख है ही। उससे इस उल्लेख के विषय अर्थात् अहिंसा के सम्बन्ध में गंभीरता पूर्वक सोचना चाहिये, जिससे कि विषय (अहिंसा) का उल्लेख सार्थक हो--[७].
प्रभावेऽस्या न युज्यन्ते सत्यादीन्यपि तत्त्वतः। अस्याः संरक्षणार्थ तु यदेतानि मुनिर्जगौ ॥८॥
भावार्थ--अहिंसा के अभाव में सत्य आदि तत्त्ता भी अवास्तविक बन जायेंगे, क्योंकि सत्य आदि सभी सुन्दर सुतत्त्व भगवती अहिंसा के संरक्षण एवं पोषण के लिये हैं ऐसा श्रीमान् जिनेश्वर देवों ने कहा है-[].
नित्यानित्यपक्षमंडनाष्टकम्
नित्यानित्ये तथा देहाद् भिन्नाभिन्ने च तत्त्वतः। घटन्त आत्मनि न्यायाद्धिसादोन्यविरोधतः ॥१॥
भावार्थ--नित्यानित्य और देह से भिन्नाभिन्न आत्मा में न्याय दृष्टि से (उसके नित्यानित्य स्वरूप की दृष्टि से बिना किसी विरोध के वास्तविक रीति से) तत्त्वतः हिंसादि घट सकते हैं--[१].