Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Manoharvijay
Publisher: Gyanopasak Samiti

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Page 58
________________ ४१ नाशहेतोरयोगेन क्षरिणकत्वस्य संस्थितिः । नाशस्य चान्यतोऽभावे, भवेद्धिसाप्यहेतुका ॥२॥ भावार्थ -- बौद्ध दर्शन की मान्यता है कि- 'विनाशक हेतु का संयोग हुए बिना यानी स्वाभाविक रीति से ही वस्तु क्षणिक है' । उससे आचार्यों का कथन है कि यदि दूसरे विनाशक हेतु द्वारा किसी के भी विनाश को अस्वीकार कर लिया, तो हिंसा भी निर्हेतुक सिद्ध हो जायगी अर्थात् कोई भी प्रारणी हिंसक नहीं कहा जायगा -- [२] . ततश्चास्या सदा सत्ता कदाचिन्नैव वा भवेत् । कादाचित्कं हि भवनं कारणोपनिबन्धनम् ॥ ३ ॥ भावार्थ - - उपर्युक्त श्लोकानुसार निर्हेतुक सिद्ध होने के बाद हिंसा के सदैव सद्भाव अथबा उसके आत्यंतिक प्रभाव का अनुभव होगा, क्योंकि कभी-कभी होने वाली उत्पत्ति सकारण ही होती है -- [ ३ ]. कदाचित् बौद्ध दर्शन वाले यह कह दें कि 'वस्तु का उत्पादक स्वयं ही उसका हिंसक है ।' इस पर यह प्रश्न उपस्थित होगा कि पदार्थ के स्वयं जनक, अथवा पदार्थ के संतान के जनक, इन दो प्रकार के जनकों में से कौनसा जनक हिंसक गिना जायगा ? यदि उसके उत्तर में बौद्ध यह कहें कि -- संतान का जनक ही हिंसक है, तो इसका प्रत्युत्तर ग्रन्थकार नीचे के श्लोक में फरमाते हैं. न च सन्तानभेदस्य जनको हिसको भवेत् । सांवृतत्वान्न जन्यत्वं यस्मादस्योपपद्यते ॥ ४ ॥

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