________________
वाला, ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न होने वाला तथा प्रायः वैराग्य का कारण रूप माना गया है-[५].
स्वस्थवृत्तेः प्रशान्तस्य तद्धयत्वादिनिश्चयम् । तत्त्वसंवेदनं सम्यग् यथाशक्ति फलप्रदम
॥६॥
भावार्थ तीसरा तत्त्वसंवेदन ज्ञान हेय अर्थात् त्याग करने योग्य, उपादेय अर्थात् उपार्जन करने योग्य एवं उपेक्षणीय वस्तुका निश्चय कराने वाला, तथा आत्मा की शक्ति के अनुसार सम्यक्-चारित्र एवं मोक्षरूप सम्यक् फल का देने वाला हैं । यह ज्ञान स्वस्थ वृत्ति वाले प्रशान्त महानुभाव को होता है - [६].
न्याय्यादौ शुद्धवृत्यादिगम्यमेतत्प्रकीर्तितम् । सज्ज्ञानावरणापायं महोदय निबन्धनम
॥७॥
भावार्थ- यह तत्त्वसंगेदन ज्ञान नीति-व्यवहार आदि में शुद्ध वृत्ति अर्थात् आचरण आदि द्वारा प्रकट रूप से स्पष्ट दीखता है, नका सद् मोक्ष साधक ज्ञानावरणीय कर्मके क्षयोपशमजन्य, महोदय-मोक्षका का कारण रूप है, ऐसा तत्त्वसंबेदकों ने कहा है--[७].
एतस्मिन्सततं यत्नः कुग्रहत्त्यागतो भृशम । मार्गश्रद्धादिभावेन कार्य प्रागमतत्परैः ॥८॥
भावार्थ--अतः शास्त्रश्रद्धावानों को कदाग्रह का त्याग करके, मोक्ष मार्ग में श्रद्धा (बहुमान-ज्ञान-प्राचरण) आदि भावपूर्णक तत्त्वसंगेदन ज्ञान हेतु सदैव प्रयत्नशील होना चाहिये--[८.]