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भावार्थ - - प्रविधिपूर्वक ग्रहण की हुई विद्या (मंत्र, तंत्र) आदि विपरीत फल देने वाले होने से लोक में जिस प्रकार उनका ग्रहरण सम्भव नहीं माना जाता अर्थात् अगृहीतव्य कहलाता है, वैसे ही प्रविधि से ग्रहण किये हुये प्रत्याख्यान को भी अप्रत्याख्यान रूप ही अर्थात् द्रव्य प्रत्याख्यान ही समझना चाहिए क्योंकि वह मोक्षरूपी सम्यक् फल नहीं देता - [४]
तथाऽसति ।
प्रक्षयोपशमात्यागपरिणामे जिनाज्ञाभक्तिसंवेगवैकल्यादेतदप्यसत्
॥ ५ ॥
भावार्थ - - दर्शन मोहनीय कर्म के क्षयोपशम के प्रभाव से जिनेश्वर देवों के आगमों के प्रति श्रद्धा पूर्वक बहुमान और संबेग नहीं होते और श्रद्धा के अभाव में त्यागजन्य सम्यक् परिणाम -- अपरिणाम जन्य द्रव्य प्रत्याख्यान भी अकिंचित्कर - बेकार है - [ ५ ]
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क्लिष्टकर्मोदयेन यत् । प्रकीर्तितम्
उदग्रवीर्य विरहात बाध्यते तदपि द्रव्य प्रत्याख्यानं
॥ ६ ॥
भावार्थ - किलष्ट अर्थात् गाढ अथवा दुष्ट कर्मोदय के कारण उत्कटवीर्यअर्थात् तीव्र शक्ति का प्रभाव रहने से प्रत्याख्यान खंडित होजाता है । उस प्रत्याख्यान को भी द्रव्य-- प्रत्याख्यान कहते हैं -- [६].
एतद्विपर्ययाद्भावप्रत्याख्यानं जिनोदितम् । सम्यक्चारित्ररूपत्वान्नियमान्मुक्तिसाधनम्
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भावार्थ - दूसरा भाव प्रत्याख्यान सम्यक् चारित्ररूप होने से निश्चय ही मोक्षदायक है, ऐसा जिनेश्वर भगवानों ने कहा है; क्योंकि यह द्रव्य-प्रत्याख्यान से विपरीत रूप है - [७].