Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Manoharvijay
Publisher: Gyanopasak Samiti

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Page 20
________________ मध्य एवं अंत में) निर्दोष शास्त्रों का सृजन किया है । (उन्हें महादेव कहते हैं ।) [५] यस्य चाराधनोपायः, सदाज्ञाभ्यास एव हि । यथाशक्ति विधानेन, नियमात्स फल प्रदः ॥ ६॥ भावार्थ-जिनकी आराधना का एकमात्र उपाय (उनकी) सद्आज्ञा का अभ्यास ही है । यदि कोई महानुभाव यथाशक्ति विधान से इनकी सद् प्राज्ञा का अभ्यास करे, तो वह नियमात् फलदायी होता है। (उन्हें महादेव कहते हैं) इन परम तारकों के शासन में आज्ञा का कितना महत्त्व है वह इस श्लोक से स्पष्ट होता है। कलिकाल-सर्वज्ञ आचार्य भगवान श्री हेमचन्द्रसूरीश्वर जी महाराज ने भी वीतराग स्तोत्र के उन्नीसवें प्रकाश के चतुर्थ श्लोक में फरमाया है वीतराग! सपर्यातस्तवाज्ञापालनं परम् । आज्ञाऽऽराद्धा विराद्धा च, शिवाय च भवाय च ॥ अर्थात-हे वीतराग! आपकी पूजा से भी आपकी आज्ञा का पालन श्रेष्ठ है । आराधी हुई आपकी आज्ञा की आराधना मोक्ष के लिये और विराधना संसार के लिये होती है । अर्थात् आज्ञा की आराधना मोक्ष की आराधना है और आज्ञा की विराधना संसार की आराधना-भवभ्रमण की अभिवृद्धि करने वाली है। सुवैद्य वचनाद्यद्वद् व्याधेर्भवति संक्षयः । तद्वदेव हि तद्वाक्याद्, ध्रुवः संसारसंक्षयः ॥ ७॥

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