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जिज्ञासा किसे होती है ? बुद्धि को या प्रज्ञा को ? बुद्धि को । जिज्ञासु की बुद्धि सम्यक् होती है, गढ़ी हुई होती है । सम्यक् बुद्धि और प्रज्ञा में क्या फर्क है ?
जो एक घंटे तक आत्मज्ञानी से ज्ञान वार्ता सुन ले, उसकी बुद्धि सम्यक् हो जाती है। जो जितना अधिक सुनेगा उसकी बुद्धि उतनी ही अधिक सम्यक् हो जाएगी लेकिन प्रज्ञा उत्पन्न नहीं होगी। प्रज्ञा तो स्वरूप ज्ञान मिलने के बाद ही उत्पन्न होती है । प्रज्ञा, वह आत्मा का डायरेक्ट प्रकाश है । सम्यक् बुद्धि, वह इनडायरेक्ट प्रकाश है। प्रज्ञा तो आत्मा का ही भाग है।
जब तक प्रज्ञा प्रकट नहीं हुई तब तक सम्यक् बुद्धि खूब उपकारी है, उसके बाद नहीं। इसके बावजूद भी सम्यक् बुद्धि को पौद्गलिक नहीं कहा जा सकता और चेतन भी नहीं कहा जा सकता । सम्यक् बुद्धि आखिर में है तो बुद्धि ही न ! बुद्धि मालिकी भाव वाली होती है । प्रज्ञा का कोई मालिक ही नहीं ।
सम्यक् बुद्धि अर्थात् अटैक वाली नहीं । अटैक वाली तो विपरीत बुद्धि है।
संसार में अच्छा-बुरा, यों दो भाग होते हैं। जबकि अपने यहाँ पर उससे भी आगे अच्छा-बुरा नहीं लेकिन मिथ्या में से सनातन वस्तु की तरफ ले जाने वाली बातें हैं । इस प्रकार दोनों अलग हैं।
अव्यभिचारिणी बुद्धि वह है जो अशांति में भी शांति करवा दे, वह प्रज्ञा से पहले की स्टेज है।
स्थितप्रज्ञ और प्रज्ञा क्या है ? जो खुद की सही पहचान है, उस समझ में स्थिर होना, वह स्थितप्रज्ञ है। स्थितप्रज्ञ दशा, प्रज्ञा के प्रकट होने की नज़दीकी दशा है । आत्मा प्राप्त होने से पहले की दशा है अतः व्यवहार अहंकार सहित होता है लेकिन वह व्यवहार बहुत सुंदर होता है। स्थितप्रज्ञ में साक्षीभाव रहता है । प्रज्ञा तो आत्मा प्राप्त होने के बाद में ही प्रकट होती है । उसमें अहंकार नहीं रहता । ज्ञाता - दृष्टा भाव रहता है। अतः स्थितप्रज्ञ में बुद्धि स्थिर हो जाती है जबकि प्रज्ञा, वह तो आत्मा का ही भाग 1
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