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आत्मा का अस्तित्व
सर्वप्रथम आत्मा का अस्तित्व-स्वीकार आवश्यक 'आत्मा ही परमात्मा है', यह जैन धर्म का मूल सिद्धान्त तभी माना जा सकता है, जब आत्मा का अस्तित्व सिद्ध हो। आत्मा का अस्तित्व सिद्ध हुए बिना साधना और आराधना का कोई महत्त्व नहीं है। आत्मा हो, तभी तो उसके विकास, कल्याण, हित या शुद्धि के लिए साधना करने का मूल्य है। आत्मा का अस्तित्व ही न हो तो किसके लिए साधना की जाय ? क्यों आत्मा को परमात्मा बनाने, अर्थात्-आत्मा में सुषुप्त परमात्मत्व को जगाने का पुरुषार्थ किया जाए ? अतः आत्मा से परमात्मा बनने के लिए सर्वप्रथम आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करना तथा 'आत्मा है', इस बात पर दृढ़ विश्वास होना चाहिए ।
अधिकांश मानव आत्मा का अस्तित्व ही नहीं मानते
आज विश्व में अधिकांश लोग तर्कशक्ति से अथवा प्रत्यक्ष देखकर ही किसी पदार्थ या तथ्य को स्वीकार करते हैं । मनुष्य आज भौतिक विज्ञान से इतना प्रभावित है कि वह जड़ जगत् को शक्तियों को ही सर्वस्व मानने लगा है। जड़ पदार्थों के संयोग से वह अपने अन्दर रही हुई चेतना की शक्ति को भूल-सा गया है । वह प्रत्यक्ष दिखाई देने वाले विज्ञान के एक से एक बढ़कर एक चमत्कारों को मानता है, और उसी का अस्तित्व स्वीकारता है। आत्मा
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