Book Title: Anuyogdwar Sutram Tika
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher:
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुप्रावच निक लौकिक द्रव्या वश्यके श्रीअनु.11 मूलोत्तराख्याः प्राणातिपातादिविनिवृत्त्यादयः पिण्डविशुद्यादयश्च, योजनं योगः आसेवनमित्यर्थः श्रमणगुणेषु मुक्तो योगो यैस्ते तथाहारि.वृत्तौल विधाः, शेषाः अवयवाः यावत् घट्टत्ति अवयवावयविनोरभेदोपचारात् जच्चे फेनकादिना घृष्टे येषां ते घृष्टाः, तथा 'मट्ठा' तैलोदकादिना मृष्टाः // 18 // मतुप्लोपाद्वा मृष्टवतो मृष्टाः 'तुप्पोट्ट 'त्ति तुप्रं-स्निग्धं तुप्रा ओष्ठाः समदना वा येषां ते तुप्रौष्ठाः, शेष कण्ठ्यं, यावदुभपकालमावश्यकस्येत्येवावश्यकाय, छट्ठीविभत्तीइ भण्णइ चउत्थीति लक्षणात् , प्रतिक्रमणायोपतिष्ठन्ते तदेतत् द्रव्यावश्यक, भावशून्यत्वादभिप्रेतफलाभावाच्च, एत्थ उदाहरणं- ' वसंतरं नगरं, तत्थ गच्छो अगीयत्थसंविग्गो भविय विहरति, तत्थ य एगो संविग्गो समणगुणमुक्कजोगी, सो दिवसदेवसिय उदउल्लादियाओ अणेसणाओ पडिगाहेत्ता महता संवेगेण पडिकमणकाले आलोएति, तस्स पुण सो गच्छगणी अगीयस्थत्तणओ पायच्छितं देतो भणति-अहो इमो धम्मसडिओ साहू, सुहं पाडसवितुं दुक्खं आलोएउं, एवं नाम एसो आलोएति अगूहते असढत्तओ सुद्धोत्ति, एवं च दट्टणं अण्णे अगीयस्थसमणा पसंसंति, चिंतेति य-णवरं आलोएयब्वंति, त्थि किंचि पडिसेवितेणंति, तत्थ अण्णया कयादी गीयत्थो संविग्गो विहरमाणो आगओ, सो दिवसदेवसिय अविहिं का दहणं उदाहरणं दाएति-गिरिणगरे वाणियओ रत्तरयणाणं घरं भरेऊण वरिसे 2 संपलीवेइ, एवं च दट्ठणं सव्वलोगो 4 अविवेगत्तओ पसंसति-अहो! इमो धण्णो जो भगवतं अम्गि तप्पेति, तत्थऽण्णया पलीवियं गिहं वाओ य पबलो जाओसव्वं नगरं दई, ततो सो पच्छा रण्णा पडिहओ, णिण्णारो य कओ, अण्णहिं णगरे एवं चेव करेइ, सो राइणा सुतो जहा कोवि वाणिओ एवं करे इत्ति, सो तेण सव्वस्सहरणो काऊण विसजिओ, अडवीए किं न पलीवेसि?, तो जहा तेण वाणिएण अवसेसावि दडा एवं तुर्मपि एवं पसंसंतो एते साहुणो For Private and Personal Use Only

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