Book Title: Anuyogdwar Sutram Tika
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: 

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Page 93
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीअनु० हारि.वृत्ती // 93 // Shikak.54CE% 'बेइंदियाणं भंत!' इत्यादि, बेइंदिओरालिया बद्धेल्लया असंखिजाहिं उस्सप्पिणी ओसप्पिणीहिं कालपमाणं तं चैव, खेत्तओ असंख- दीन्द्रियाजाओ सेढीओ, तहेव पयरस्स असंखज्जइभागो, केवलं विकृखंभसूईए विसेमो, विक्खंभसूई असंखज्जाओ जोयणकोडाकोडीआत्ति विसेसित दाना परं परिसंखाण, अहवा इदमणं विससिततरं-असंखजाई सेढिवम्गमूलाई, किं भणितं होति?, एकेकाए सेदीए जो पदेसरासी पढम वग्गमूला वितियं तइयं ज.व असंखेज्जाई वग्गमूलाई संकलियाई जो पएसरासी भवति तप्पमाणा विक्खंभसूई बेइंदियाणं, णिदरिसणं-सेढी पंचसटिसहस्साई पंच मयाई छत्तीसाई पदेसाणं, तीसे पढौ बग्गमलं बेसता छप्पण्णा बितियं सोलस तइयं चत्तारि चउत्थं दोष्णि, एवमेताई वग्गम|लाई संकलिताई दो सता अट्ठसत्तग भवंति, एवइया पदेसा, तासिणं सेढीणं विक्खंभसूईए, ते सम्भावाओ असंखज्जा वग्गमूलरासी पत्तेय ! पत्तेयं घेत्तव्वा / इदाणिं इमा मग्गणा-किंपमाणाहिं ओगाहणाहिं रइज्जमाणा बेदिया पयर पूरिजंतु ?, ततो इमं सुत्तं बेईदियाणं ओरा8 लियबद्धेल्लयेहिं पयरं अवहीरति असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणीओसप्पिणीहि कालओ, तं पुण पतरं अंगुलपतरासंखेज्जभागमेत्ताहि ओगाहणाहिं अरइज्जतीहिं सव्व पूरिज्जति, तं पुण केवइएणं कालेणं रइज्जइ वा पूरइकाइ वा?, भण्णति, असंखेजाहिं उस्सपिणीओसप्पिणीहि, कि पमाणेण पुण खेत्तकालावहारेणं?, भण्णइ-अंगुलपतरस्स आवलियाए य असंखेज्जतिपलिभागेणं जो सो अंगुलपतरस्त असंखज्जतिभागो एएहिं पलिभागेहि हीरति, एस खेत्तावहारो, आह असंखेजतिभागम्हणण चव सिद्धं कि पलिभागम्हणेणं ?, भण्णति-एकक बेइंदियं पति जो भागो सो पलिभागो, जं भाणितं अवगाहोत्ति, कालपलिभागो अवलियाए असंखेज्जतिभागो, एतेण आवलिअ.ए असंखेज्जइभागमेत्तेणं कालपलिभागेणं // 93 / / एकेको सेत्तपलिभागो सोहिज्जमाणेहिं सव्वं लोगपतरं सोहिज्जइ खत्तओ, कालओ असंखेज्जाहिं उस्सप्पणिओसपिणीहि, एवं बेइंदियोरावालियाणं उभयमभिहितं संखप्पमाणं ओगाहणापमाणं च, एवं तेइंदियचउरिदियपंचदियतिरिक्खजोणियाणवि भाणितव्याणि, पंचेदियतिरिक्खवे - - - For Private and Personal Use Only

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