Book Title: Anuyogdwar Sutram Tika
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher:
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________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kallassagarsur Gyanmandir R श्रीअनुहा | एते तिण्णिवि रासी अणंता दट्ठन्वा, एवं कम्मयाइंपि, तस्स सहभावित्तणओ तत्तुल्लसंखाई भवंति, एवं ओहियाई पंच सरीराई भणिताई / .. नारकाणां क्रियाणि हारि वृत्तामणेरयाणं भंते!' इत्यादि विसेसिय णारगाणं वउब्विगा बद्धेल्लया जावया एव णारगा, ते पुण असंखेज्जा, असंखेन्जाहिं उस्सप्पिणीहिं काल-IN एप्पमाणं, खेत्तओ असंखेग्जाओ सेढीओ, तासिं पदेसमेत्ता णारगा, आह-पयरंमि असंखेज्जाओ सेढीओ, आयरिय आह-सयलपयरसेढीओ ताव न भवंति, जदि होतीओ तो पयरं चेव भण्णति, आह-तो ताओ सेढीओ किं देसूणपयरवत्तिणीओ होज्जा, तिभागच उभागवत्तिणीओ होज्जा?, जा अ णं सेडीओ पतरस्स असंखेजतिभागो, एयं बिसेसिययरं परिसंखाण कयं होति, अहवा इदमण्णं विसेमिततरं विक्खंभसूईए एएसिं संखाणं &भण्णति, भणइ-तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई अंगुलपढमवग्गमूलं बिति यवन्गमूलोपाइयं तावइयं जाव असंखेज्जाइसमितस्स, अंगुलविक्खंभखेत्त-18 वत्तिणो सेढीरासिस्स जं पढमं वग्गमूलं तं बितिएण वग्गमूलेण पडुप्पातिजति, एवइयाओ सेढीओ विक्खंभसूई, अहवा इयमण्णेणप्पगारेण पमाणं भण्णइ-अहवा तभंगुलपितियवग्गमूलघणप्पमाणमेत्ताओ, तस्से वंगुलप्पमाणखेत्तवत्तिणो सेढिरासिस्स जं बितियं वग्गमूलं तस्स जो घणो एवतियाओ सेढीओ विक्खंभसू, वासिणं सेढीणं पएसरासिप्पमाणमेत्ता नारगा, तस्स सरीराईच. तेसि पुण ठवणंगले णिदारसणंदो छप्पण्णाई सेढिवग्गाई अंगुले बुद्धीए घेप्पंति, तस्स पढमं वग्गमूलं सोलस, बितियं चत्तारि, तइयं दोणि, तं पढमं सोलसयं बितिएण चउक्कएण वग्गमूलेण गुणियं चसट्ठी जाया, वितियवग्गमूलस्स चउक्कयस्स घणा चेव चउसट्ठी भवति, एत्थ पुण गणितधम्मो अणुयत्तिओ | होति, जदि बहुयं थोवेण गुणिज्जति, तेण दो पगारा गुणिता, इहरथा तिण्णिवि वंति, इमो तइओ पगारो-अंगुलवितियवग्गमूलं पढमवग्ग // 91 का मूलपडुप्पण्णं, षोडशगुणाश्चत्वार इत्यर्थः, एवंषि सा चेव चउसी भवति, एते सव्वे रासी सम्भावतो असंखेज्जा दडव्वा. एवं ताई नारगवे-18 उब्वियाई बद्धाई, मुक्काई जहोदियओरालियाई, एवं सम्वसि सरीरीणं सब्यसरीराई मुक्काई भाणियब्वाई, वणस्सइतेयाकम्माई मोत्तुं, AKASRAEKRE - For Private and Personal Use Only

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