Book Title: Anuyogdwar Sutram Tika
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher:
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीअनु सब्वेवि परिश्चयसि, ताहे जाहे सो न ठाइ ताहे तेण साहुणो भणिता-एस महानिद्धम्मो अगीयत्थो, ता अलं एयस्स आणाए, जइ एयस्स णि भावाहारि वृत्ती | गहो ण कीरइ तओ अण्णेवि विणस्संतित्ति | 'सेत' मित्यादि निगमनत्रयं निगदसिद्धं / 'से किंत' मित्यादि (22-28) अवश्यक्रियानुष्ठा वश्यक्रियानुष्ठावश्यकम् नादावश्यकं गुणानां च आवश्यमात्मानं करोत्यावश्यक, उपयोगाद्यात्मकत्वाद्भावश्चासावावश्यकं चेति समासः, भावप्रधानं वाऽऽवश्यक // 19 // भावावश्यक, भावावश्यकं द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा- आगमतो नोआगमतश्च, ' से कित' मित्यादि, ( २३-२८)ज्ञ उपयुक्तः, अयमत्र भावार्थ: आवश्यकपदार्थज्ञस्तजनितसंवेगेन विशुद्भूयमानपरिणामस्तत्रैवोपयुक्तस्तदुपयोगानन्यत्वादागमतो भावावश्यकमिति, तथा चाह- 'सेत'मित्यादि निगमनं / ' से किंत / मित्यादि, (24-28) नोआगमतो भावावश्यकं ज्ञानक्रियोभयपरिणामो, मिश्रवचनत्वानोशब्दस्य, IC त्रिविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-लौकिकमित्यादि, ' से कित' मित्यादि ( 25-28) पूर्वाहे भारतमपराहे रामायणं, तद्वचनश्रोतृणां पत्रकपरावर्तन४ संयतगात्रादिक्रियायोगे सति तदुपयोगभावतो ज्ञानक्रियोभयपरिणामसद्भावादित्यभिप्रायः, 'सेत' मित्यादि निगमनं, 'सेकिंत' मित्यादि | (26-29) गतार्थ यावदिज जलीत्यादि, इज्जंजलिहोमजपाणुरूवनमस्कारादीनि श्रद्धानुभावयुक्तत्वात, भावावश्यकानि कुर्वति, तत्र इज्ज्यावलियांगांजलिरुच्यते, स च यागदेवताविषयः मातुर्वाञ्जलिरिज्जाञ्जलिर्मातृनमस्कारविधावितिभावः होमाग्निः-हवनक्रिया जपोमंत्रादिन्यासः उडुरुक्खं(क) ति देशीवचनं वृषभर्जितकरणाद्यर्थ इति, अन्ये तु व्याचक्षते-उंदु-मुखं तेण रुक्खं (क)ति-सहकरणं तंपि वसभढकियादि चेव घेप्पति, नमस्कारः प्रतीतो, यथा- नमो भगवते दिवसनाथाय, आदिशब्दात स्तवादिपरिग्रहः, सेत'मित्यादि, निगमनं, से किं त' मित्यादि, (27-30) यदित्यावश्यक्रमभिसंबद्धयते, श्रमणो वेत्यादि सुगम, यावत्तचित्तत्यादि, सामान्यतस्तस्मिन् आवश्यके 18 // 19 // दिचित्तं-भावमनोऽस्येति तचित्तः, तथा तन्मनो द्रव्यमन: प्रतीत्य विशेषोपयोग वा, तथा तल्लेश्य:- तत्स्थशुभपरिणामविशेष इति भावना, ONLINESCA5Ck For Private and Personal Use Only

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