Book Title: Anuyogdwar Sutram Tika
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: 

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Page 29
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अप्रशस्तभावोपक्रमः श्रीअनु० तापक्रम्यन्ते-योग्यतामापाद्यन्ते भादिशब्दाद्विनाशकारणगजेन्द्रवधादिपरिग्रहः 'सेत' मित्यादि निगमनं / 'से किंत' मित्यादि, हारि वृत्ती (68-48 ) कालस्य वर्तनादिरूपत्वात् द्रव्योपक्रम एवोपचारात् कालोपक्रम इति, चंद्रोपरागादिपरिज्ञानलक्षणो वा, या 'जं ण' मित्यादि, यन्नालिकादिभिः काल उपक्रम्यते--ज्ञानयोग्यतामापाद्यते, नालिका-घटिका, आदिशब्दात् प्रहरादिपरिग्रहः, 'सेत' मित्यादि निगमनवाक्य, // 29 // भावोपक्रमो द्विधा-आगमतो नोआगमतश्च, आगमतो ज्ञाता उपयुक्तः, नोऽआगमतस्तु प्रशस्तोऽप्रशस्तश्चेति, तत्राप्रशस्तो डोहिणिगणिकामा-17 त्यादीनां, एत्थोदाहरणानि-एगा मरुगिणी, सा चिंतेति-किह धूताओ सुहिताओ होज्जत्ति ?, तो जेहिता धूया सिक्वाविया, जहा-वरंती मत्थए पण्हीए आणिज्जासि, ताए आहतो, सो तुट्ठो पादं महितुमाररो, ण दुक्खावियत्ति, तीए मायाए कहियं, ताए भणिय-जं करेहि तं करेहि, ण एस किंचि तुज्झ अवर ज्झतित्ति, वितिया सिक्खाविया, तीएवि आहओ, सो झखित्ता उवसंतो, सा भणति--तुर्मपि वीसत्था विहर, णवरं संखणओ एसोत्ति, तइया सिक्खविया, तीएवि आहओ, सो रुट्ठो, तेण दढं पिट्टिया धाडिया य, तं अकुलपुत्ती जा एवं करेसि, तीए मायाए | कहियं, पच्छा कहवि अणुगमिओ-अम्ह एस कुलधम्मोत्ति, धूया य भणिया--जहा देवयस्स वट्टिज्जासित्ति, मा छडिहिति / एगम्मि जयरे चउसट्ठिकलाकुसला गणिया, तीए परभावोवक्कमणनिमित्तं रतिघरम्मि सव्वाओ पगतीओ नियनियवावारं करेमाणीओ आलिहावियाओ, तत्थ य जो जो वट्टइमाई एइ सो सो नियं 2 सिप्पं पसंसति, णायभावो त सुअणुयत्तो भवति, अणुयत्तिओ य उवयारं गाहिओ खर्बु खर्चा दब्वजातं वितरेति, एसवि अपसत्थो भावोवक्कमो / एगम्मि णयरे कोई राया अस्सवाणियाए सह अमच्चेण णिग्गओ, तत्थ य से अस्सेजाणऽबाधेणं खलिणे काइया वोसिरिया, खल्लरं बद्ध, तं च पुढविथिरत्तणओ तहट्ठियं चेव रण्णा पडिनियत्तमाणेण सुइरं निज्झाइयं, चिंतियं | चाणेण--इह तलागं सोहणं हवइत्ति, ण उण वुत्तं, अमच्चेणं इंगितागारकुसलेण रायाणमणापुच्छिय महासरं खणावियं चेव, पालीए आरामो SANSAR ALSO 1964 // 29 / / For Private and Personal Use Only

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