Book Title: Anuyogdwar Sutram Tika
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher:
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीअनु: हरि वृत्ती // 41 // ORG पुव्विदव्वाई लोयस्स किं संखेज्जतिभागे होज्जा' इत्यादौ निर्वचनसूत्रं / नियमा सबलोए होज्जा' सामण्णवेक्खाए आणुपुञ्बीए औपानि| एगत्तणओ सब्वगयत्तणओ य, एवमणाणुपुचिअवत्तब्वगावि भाणितव्वा / फुसणावि एवं चेव भागितब्वा, कालतो पुण सव्वद्धं, आणुपुवी-| धिकी द्र| सामान्यस्य सर्वकालमेव भावात् , एवमणाणुपुब्विअवत्तब्वगावि भाणियव्वा, अंतरचिन्ताए णत्थि अन्तरं, प्रयोजनमनन्तरोक्तमेव, भाग द्वारेऽपि नियमात् त्रिभागो, जेण तिणि चेवेत्थ रासी, एत्थ चोदगो भगति-गणु आदीए अत्तवहितो अणाणुपुब्बी विसेसाधिता तेहिंतो | आणुपुव्वी असंखेज्जगुणा, आचार्य आइ-- नेगमववहाराभि पायतो, इमं पुग संगहाभिपायतो भणितं, किंचान्यत्-जहा एगस्स रगो | तओ पुत्ता, तोर्स अस्से मग्गन्ताणं एगस्स एगो आसो दिण्णो, सो छ सहस्से लब्भति, वितियस्स दो आसा दिण्णा, ते तिणि तिण्णि सहस्से |लभंति, तइयस्स बारस आसा दिण्णा, ते पंच पंच सए लब्भंति, विसमावि ते मुल्लभाव पडुच्च तिभागपडिता भवंति, एवं आणु नुवि| मादीवि दवा आणुपुब्विअगाणुपुग्विअवत्तब्धगतिभागसमत्तणतो नियमा तिभागेत्ति भणितं ण दोसो, सादिपारि गाभिए भावे पूर्ववत्, | गता अणोवणिहिया दवाणुपुब्वी | 'से किं त' मित्यादि, अथ कथमोपनिधिकी द्रव्यानुसू! ?, औपनिधिको द्रव्यानुपूर्वी त्रिविधा प्रज्ञता, शतद्यथा--' पूर्वानुपूर्वी ' त्यादि (96-73) तस्मात्प्रथमात्प्रभृति आनुपूर्वी अनुक्रमः परिपाटी पूर्वानुपूर्वी, पाश्चात्यान-चरमादारभ्य व्यत्य-1 | येनैवानुपूर्वी पश्चानुपूर्वी, न आनुपूर्वी अनानुपूर्वी यथोक्तप्रकारद्वयातिरिक्तरूपेत्यर्थः, 'से कित' मित्यादि. (97-73) तत्र द्रव्यानुपूय॑धिकारात् धर्मास्तिकायादीनामेव च द्रव्यत्वादिदमाह--'धम्मस्थिकाए' इत्यादि, तत्र जीवपुद्गलानां स्वाभाविके क्रियावत्वे गतिपरिण // 41 // | तानां तत्स्वभावधारणाद्धर्मः, अस्तय:-प्रदेशास्तेषां काय:--संघात: अस्तिकायः धर्मश्वासावस्तिकायश्चेति समासः, तथा जीवपुद्गलानां स्वाभाविके क्रियावत्त्वे तत्परिणतानां ततस्वभावाधारणादधर्म:. शेष धर्मास्तिकायवत् , तत्र सर्वद्रव्यस्वभावाऽऽदापनादाकाश, स्वभावनावस्थानादि-13 4%ACKGR For Private and Personal Use Only

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