Book Title: Anuyogdwar Sutram Tika
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: 

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Page 40
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीअनुः हारि.वृत्ती नुगमः // 40 // समोतारे' त्यादि ( 94-71 ) सूत्रीसद्ध, यावत् 'संगहस्स आणुपुग्विदव्वाई आणुपुविदव्वेहिं समातरंति' तज्जाती वर्तन्ते, आनुपूर्वी x संग्रहेणात्वेन भवन्तीत्यर्थः, एवमनानुपूर्व्यवक्तव्यकद्रव्यचिन्तायामपि भावना कार्या, पाठान्तरं वा 'सट्टाणे समोतरति ' स्वस्थानं तस्मिन् समवतरंतीति, अत्राह- सहाणे समोतरतीति भणह, किं तं आतभावो सट्टाणं परदब्वं वा समभावपरिणामत्तगओ सहाणं?, जदि आतभावो सट्ठाणं | ता तो आतभावे ठितत्तणतो समोतारो भवति, अह. परदव्वं तो आणुपुब्बिदव्वस्स अणाणुपुव्विअवत्तव्वगदव्वावि मुत्तित्तवण्णादिपहिं समभावत्तणतो सट्ठाणं भविस्संति, एवं चोदिते गुरू भगति-सम्बदव्या आतभावेसु वणिजमाणा आतभावसमोतारे भवंति, जतो जीवदव्वं जीवभावेसु समोतरिजइ णोऽजीवभावेस, अजीवदबपि अजीवभावसु न जीवभावेवित्यर्थः. परदबपि समभाववि सेसादिसामन्नत्तगओ सहाणं | घेप्पइत्ति ण दोसो, इह पुण अधिकारे आणुपुब्विभावविसेसत्तगओ आणुपुब्बिदवपक्खे समोतरतित्ति सट्ठाणं भणित, एवं अणाणुपुश्वि अवत्तब्वेसवि सदाण समोतारो भाणियब्वो इति, सेत' मित्यादि, निगमनं / से कितं अणुगमे ?, अणुगमे अविहे पण्णत्ते,1* का तंजहा- सन्तपद' गाहा (49--71) णवरं अप्पावह णस्थि' ति (95-71) विशेषत इयं च नयान्तराभिप्रायतो व्याख्यातेव, / य एवेह विशेषोऽसावेव प्रतिद्वारं प्रतिपाद्यत इति, तत्र संगहस्से' त्यादि, ग्रन्थसिद्ध मेव, यावन्नियमा एको रासी, एत्थ सुत्तुच्चारणसमणंतरमेव आह चोदक:--णगु दवप्पमाणे पुढे असिलिट्टमुत्तरं, जओ एको रासित्ति पमाणं कहियं, जओ बहूणं सालिबीयाणं एको रासी भण्णति, एवं बहूणं आणुपुब्बियाणं एक्को रासी भविस्लति, बहू पुग दवा पडिवज्जितव्या, आचार्य आह--एकरासिग्रहगण बहुसुवि 4 // 40 // | आणुपुर्दिवदव्वेसु एक चेव आणुपुब्विभावं सेति, जहा भूनेसु कठीगमुत्त तं, अहवा जहा बह्वो परमाणवो खंवतभावपरिणता एगखंधो भण्णति, एवं बहुआणुपुग्विव्वा आणुपुयिभावपरिणयत्तणतो एगाणुपुवित्तं एगत्तणओ एगो रासीति भणितं न दोसो, 'संगहस्स आणु ****PROSES For Private and Personal Use Only

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