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वर्ष १५] कोप्पलके शिलालेख
[२१ (१) सेप्य म-तीर्थ (बड़ा तीर्थ) और (२) पेरनि- किसी समयमें एक समृद्ध नगर था और इसके महत्वने गरई (महानदीका तट)। इन दो पदोंकी दृप्टिसे डॉ. मौर्य सम्राट अशोकका भी ध्यान इसकी ओर आकर्षित पर्ल टके मतानुसार विद्रापुर ही कोप्पम् हो सकता है। क्योंकि किया था। इसके आस-पासमें कुछ ऐसे समाधिस्थल तथा यहां कोपेश्वरका प्राचीन मन्दिर भी है और यह कृष्णानदी. दूसरी पुरातन चीजें मिलती हैं, जिनका सम्बन्ध उनके के तट पर भी अवस्थित है।
नामोंके कारण मौर्यकाल या मौर्य शासकोंसे जोड़ा जाता किन्तु आधुनिक पुरातत्ववेत्ता विद्वानोंकी सम्मतिमें यह है। यदि ऐतिहासिक तथ्यका इस मान्यतामें थोड़ाकोप्पम् खिद्रापुर न होकर कोप्पल या कोपवल हो सकता सा भी लेश हो तो निश्चय ही कोपप्लका पुरातत्व पाजसे है। उनकी यह सम्मति कुछ अधिक ठोस प्रमाणों पर २२ सौ वर्ष पहले तक पहुँच जाता है और इस प्रकार यह आधारित प्रतीत होती है। एक तो यह कि कोप्पमके मान लिया जा सकता है कि कोप्पल प्रागैतिहासिक कालसे सम्बन्धमें एक जो यह पद पाया है पेरारु अर्थात् यह नगर दक्षिणका अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यह निश्चित महानदीके तट पर अवस्थित था । किन्तु यह महानदी रूपसे एक महानगर और महातीर्थ या आदि तीर्थ था। कृष्णा या तुगभद्रा न होकर हिरेहल्ल होनी चाहिये, जिसका यहां कछ शिलालेख दिये जा रहे हैं, जो मूलतः कनड़ी स्वयं अर्थ है महानदी, जिसके दायें तट पर यह कोप्पल में हैं। इनसे जैन इतिहास की कई महत्वपूर्ण बातों पर नगर बमा हुआ है। दूसरे कोप्पम्के साथ एक ऐतिहासिक प्रकाश पड़ता है। घटनाका भी सम्बन्ध रहा है। वहां पर चोल और चालुक्योंका
शिलालेख नं. १ प्रसिद्ध युद्ध हुआ था। इस दृष्टिसे भी कोप्पल ही वह
यह लेख चन्द्रवण्डो शिलापर खुदा हुआ है। इसमें स्थान हो सकता है। यहां पुरातत्वकी सामग्री चारों ओर
समृद्ध कोपणके चन्द्रसेनदेवके शिष्य गुरुगल भण्डय्यकी बिखरी पड़ी है, जिससे उसकी प्राचीनता असंदिग्ध हो जाती
निषधिकाका उल्लेख है। संभवतः यह शिलालेख ईसाकी है । कुछ शास्त्रीय प्रमाण भी इस सम्बन्धमें मिले हैं जो अत्यन्त रोचक है । 'चामुण्डरायपुराण' और कवि रक्षके
१३वीं शताब्दीका है । शिलालेख इस प्रकार है'अजित पुराण में कोपणका उल्लेख पाया है। उस उल्लेखके
(१) श्री कोप्यनड अनुसार कोपण किसी पहाड़ीके निकट बसा हुअा था और
(२) चन्द्रसेन देव नगरमें ७७२ वसतियां (मन्दिर) थीं। यह बात भी
(३) र गुड गुरु गल कोप्पल या कोपवलक ही पक्षमें अधिक संगत जान पड़ती है।
(४) भण्ड (य्य) न निक्योंकि कोपवलक निकट इन्द्रफिला या अर्जुनशिला नामक
(१) विद्धि एक छोटी सी पहाड़ी है। यहां कुछ शिलालेख भी मिले
शिलालेख नं. २ हैं जिनमें कोपवलक विभिन्न मन्दिरोंके लिये भूमि-दानका
यह शिलालेख भी पूर्व शिलालेखकी तरह चन्द्रवण्डी निर्देश है। इन सब प्रमाणोंसे यह माननेमें कोई आपत्ति शिलापर उत्कीर्ण है। इस पर शक सं० ८०३ पड़ा हुआ नहीं होनी चाहिये कि कोपज या कोपवल ही वास्तवमें है। इसमें लिखा हुआ है कि कुन्दकुन्द शाखाके एक चट्ट गढ ऐतिहासिक कोपण है।
भट्टारकके शिष्य सुप्रसिद्ध सर्वनन्दी भट्टारक यहाँ पाकर कोप्पल हिरेतल्लके बायें तट पर बसा हुआ है । यह विराजे, इस ग्रामका उन्होंने बड़ा उपकार किया। इस पवित्र तुझमदा नदीकी एक सहायक नदी है । इसके भासपास भूमि पर उन्होंने बहुत समय तक तपस्या की और अन्तमें सम्राट अशोकके कई शिलालेख मिलते हैं, जिससे इस यहीं उन्होंने समाधिमरण किया । नगरका ऐतिहासिक महत्व बहुत बढ़ जाता है। स्वयं कोप्पल• हम शिलालेग्बकी उल्लेखनीय बात यह है कि इसमें के उपनगर विमठ और पल्किगुण्डु में ऐसे दो शिलालेख पर्वकी चार पंनियाँ कनडी गद्य में हैं और अन्तिम दो पंक्रियाँ मिले हैं। इसी तरह कोप्पलसे १४ मील दूर मस्कीमें और संस्कृतके प्रार्याछन्द में हैं। शिलालेख इस प्रकार हैपूर्वकी ओर १४ मील दूर इर्रागुडीमें भी अशोकके शिला. -स्वस्ति श्रीशक वर्ष ऐण्टु-नुर मुरानेय वर्षलेख मिलते हैं । इनसे ऐसा प्रतीत होता है कि कोप्पल २-दण्ड कुन्दकुन्दान्त्रयड इक चहुगड-भट्टारर शिष्यर