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आनन्दवन का रहस्यवाद
यह व्याख्या रहस्यवाद का मूल स्रोत, कार्य, पद्धति, स्वरूप और आदर्श का स्पष्टीकरण करती है, फिर भी, इसमें रहस्यात्मक भावना का समावेश नहीं हुआ है । अत: परशुराम चतुर्वेदी के अनुसार - "रहस्यवाद एक ऐसा जीवन दर्शन है जिसका मूल आधार, किसी व्यक्ति के लिए उसकी विश्वात्मक सत्ता की अनिर्दिष्ट वा निर्विशेष एकता वा परमात्मतत्त्व की प्रत्यक्ष एवं अनिर्वचनीय अनुभूति में निहित रहा करता है और जिसके अनुसार किए जानेवाले उसके व्यवहार का स्वरूप स्वभावतः विश्वजनीन एवं विकासोन्मुख भी हो जा सकता है ।"" इस व्याख्या के अनुसार रहस्यवाद एक जीवन-दर्शन बनता है, जो निर्विशेष एकता की अनुभूति से उसके व्यवहार के विकामोन्मुख स्वरूप का ख्याल कराती है ।
डा० आर० डी० रानाडे के अनुसार " रहस्यवाद मन की एक ऐसी प्रवृत्ति है, जो परमात्मा से प्रत्यक्ष, तात्कालिक, प्रथम स्थानीय, और अन्तर्ज्ञानीय सम्बन्ध स्थापित करती है । " २ डा० वासुदेव सिंह के मतानुसार " वस्तुतः अध्यात्म की चरम सीमा ही रहस्यवाद की जननी है" । ३
डा० रामनारायण पाण्डेय के अनुसार "रहस्यवाद मानव की वह प्रवृत्ति है, जिसके द्वारा वह समस्त चेतना को परमात्मा अथवा परम सत्य के
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possible to mere reason. A developing life of mysticism means a gradual ascent in the scale of spiritual values, experience, and spiritual ideals. As such, it is many-sided in its development and as rich and complete as life itself. Regarded from this point of view, mysticism is the basis of all religionsparticularty of religion as it appears in the lives of truly religious men.
(Chicago, 1927), p. IX (Preface ) .
रहस्यवाद, आ० परशुराम चतुर्वेदी, पृ० २५ ।
Mysticism denotes that attitude of mind which involves a direct immediate, first-hand, intuitive apprehension of God.
R. D. Ranade, Mysticism in Maharashtra, Aryabhushan Press, office, Poona-2, Ist. Edition, 1963 (Preface p. I).
३. अपभ्रंश और हिन्दी में रहस्यवाद, पृ० १३ ।