Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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मनुष्य हो जाता और अगर कोई मनुष्य गिरता, तो वह देव हो जाता किन्तु अगर कोई अधिक लोभवश दुबारा इस शाखा पर से सरोवर के जल में गिरता तो वह अपनी भूतपूर्व मूल अवस्था को प्राप्त कर लेता था। एक दिन एक वानर-युगल के देखते ही देखते एक मानव-युगल (दम्पत्ति) उस बंजुल वृक्ष की शाखा पर से उक्त सरोवर में गिर पड़ा और उस तीर्थ के प्रभाव से देव-युगल हो गया। यह देखकर बन्दर का जोड़ा भी इसी प्रकार सरोवर में गिरा और गिरते ही मनुष्य-युगल हो गया। मनुष्यरूप में बने हुए वानर ने अधिक लोभवश अपनी स्त्री से कहा"प्रिये ! आओ। हम पुनः इस सरोवर में कूदें, ताकि देव रूप बन जायें।" स्त्री ने इस बात से इन्कार करते हुए कहा-"फिर पानी में गिरने से न मालूम क्या हो जाये ? हमारा जो यह मनुष्य रूप है, वही बस है। शास्त्रों में अतिलोभ को अनर्थकर बताकर उसका निषेध किया है।' इस प्रकार स्त्री के मना करने पर भी वह मनुष्यरूपधारी वानर अतिलोभवश पुनः उसी सरोवर में कद पडा और दर्भाग्य से फिर अपने मल स्वरूप वानररूप में वह बन्दर बन गया। उसके पश्चात् वहाँ कोई राजा आया। वह उस स्त्री को देखकर उसके रूप पर मोहित हो गया और उसे अपनी रानी बना लिया। उधर उस बन्दर को कोई मदारी ले गया। एक दिन मदारी उस बन्दर को लेकर खेल दिखाने के लिए उस स्त्री (अपनी भूतपूर्व पत्नी) के साथ बैठे हुए राजा के पास आया। बन्दर ने अपनी मनुष्यरूप भूतपूर्व पत्नी को पहचान लिया। वह स्त्री भी बन्दर को पहचान गई। अतः जंजीर से बँधा होने पर भी बन्दर रानी को लेने के लिए बार-बार उसके सम्मुख दौड़ने लगा। अतः रानी ने उससे कहा-“अरे बन्दर ! जैसा जो समय हो, उसी के अनुसार व्यवहार कर। बंजुल के पेड़ से गिरने के लोभ में आकर भ्रष्ट हुए बन्दर ! अब पुरानी बातों को भूल जाओ। अब तो जैसी हालत में हो, उसी में रहो।" ___ जैसे अधिक लोभ में आकर सरोवर में कूदना बन्दर के लिए दुःखदायी हुआ, वैसे ही
अधिक लोभवश शास्त्र-पाठ में मात्रा, अक्षर आदि बढ़ा देने से वह भी अनर्थकर होता है। सारांश यह है कि
अत्थस्स विसंवाओ सयभेयाओ तओ चरणभेओ।
तत्तो मोक्खाभावो, मोक्खाभावेऽफला दिक्खा ॥८६६॥ कम अक्षर या अधिक अक्षर होने से सूत्र के अर्थ में विसंवाद उत्पन्न हो जाता है। सूत्र का सूत्रत्व नष्ट हो जाता है। अथवा हीनाधिक अक्षर होने से उस सूत्र-पाठ में अन्तर पड़ जाता है। सूत्र-पाठ में भिन्नता होने से अर्थ में भी भिन्नता आ जाती है। अर्थ में भिन्नता होने से चारित्र छिन्न-भिन्न हो जाता है, चारित्र के छिन्न-भिन्न हो जाने से मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती और मोक्ष-प्राप्ति के अभाव में महाव्रत दीक्षा या श्रावक की अणुव्रत दीक्षा निष्फल हो जाती है। (हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. ४२)
आवश्यक प्रकरण
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The Discussion on Essentials
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