Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 293
________________ AMAOIMAOIMAOINOWomromrotrowonomwome __ (Answer) Indeed, as a rule they exist. Same is true also for ananupurvi (non-sequential) and avaktavya (inexpressible) substances. (२) क्षेत्रानुपूर्वी : द्रव्यप्रमाण १५१. णेगम-ववहाराणं आणुपुब्बीदव्वाइं किं संखेज्जाइं असंखेज्जाइं अणंताई ? नो संखेज्जाइं नो अणंताई, नियमा असंखेज्जाई। एवं दोण्णि वि। १५१. (प्रश्न) नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वी द्रव्य क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं, अथवा अनन्त हैं? (उत्तर) नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वी द्रव्य न तो संख्यात हैं और न अनन्त हैं किन्तु नियमतः असंख्यात हैं। इसी प्रकार दोनों अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक द्रव्यों के लिए भी समझना चाहिए। (2) KSHETRANUPURVI : DRAVYAPRAMANA-DVAR ___ 151. (Question) According to the naigam-vyavahar naya (coordinated and particularized viewpoints) are the anupurvi dravya (sequential substances) countable, uncountable, or infinite (numerically) ? (Answer) They are neither countable nor infinite but are uncountable (numerically). Same is true for the remaining two, i.e., according to the naigam-vyavahar naya (coordinated and particularized viewpoints) both ananupurvi dravya. (non-sequential substances) and avaktavya dravya (inexpressible substances) are uncountable (numerically). विवेचन-सूत्र में क्षेत्र की अपेक्षा आनुपूर्वी आदि द्रव्यों का प्रमाण असंख्यात बतलाया है। इसका निम्न कारण है। आकाश के तीन प्रदेशों में स्थित द्रव्य क्षेत्र की अपेक्षा आनुपूर्वी रूप हैं और तीन आदि प्रदेश वाले स्कन्धों के आधारभूत क्षेत्र विभाग असंख्यातप्रदेशी लोक में । असंख्यात हैं। इसलिए द्रव्य की अपेक्षा बहुत आनुपूर्वी द्रव्य भी आकाश रूप क्षेत्र के तीन प्रदेशों में तीन, चार, पाँच छह आदि से लेकर अनन्तप्रदेश (परमाणु) वाले अनेक आनुपूर्वीद्रव्य अवगाढ होकर रहते हैं। अतः ये सब द्रव्य तुल्य प्रदेशावगाही होने के कारण आनुपूर्वी प्रकरण ( २३३ ) The Discussion on Anupurvi SAYKORVAORVAORVAORVAORTAOAVAOAVAOAVAORTAORTAORYAORTAORTAORMAONTARVAORYAORTOIMGORTIONORMOMEONIONronwrommmmmmmmmmnirma For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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