Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 429
________________ book k Sø° 6° ह उवसमिया सम्मत्तलद्धी उवसमिया उवसंतमोहणिज्जे उवसंतकसायछउमत्थवीतरागे । से तं उवसमनिप्फण्णे । से तं उवसमिए । २४१ (प्रश्न) उपशमनिष्पन्न औपशमिकभाव क्या है ? (उत्तर) उपशमनिष्पन्न औपशमिकभाव के अनेक प्रकार हैं। जैसे कि उपशांतक्रोध यावत् उपशान्तलोभ, उपशान्तराग, उपशांतद्वेष, उपशांतदर्शनमोहनीय, उपशांतचारित्र मोहनीय, उपशांतमोहनीय, औपशमिक सम्यक्त्वलब्धि, औपशमिक चारित्रलब्धि, उपशान्तकषाय छद्मस्थवीतराग आदि उपशमनिष्पन्न औपशमिकभाव हैं। यह औपशमिकभाव का स्वरूप है। 241. (Question) What is this Upasham-nishpanna Aupashamik bhaava (pacified state produced by pacification of karmas)? (Answer) Upasham-nishpanna Aupashamik bhaava (pacified state produced by pacification of karmas) is of many types-Upashanta krodh to Upashanta lobha, Upashanta raga, Upashanta dvesh, Upashanta Darshan mohaniya, Upashanta Charitra mohaniya, Upashanta mohaniya, Aupashamik Samyaktva-labdhi, Aupashamik Charitralabdhi, Upashanta-kashaya Chhadmasth-vitarag, etc. This concludes the description of Upasham-nishpanna Aupashamik bhaava (pacified state produced by pacification of karmas). This also concludes Aupashamik-bhaava (pacified state). चरित्तलद्धी विवेचन - मोहनीयकर्म के दो भेद हैं, दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय । दर्शनमोहनीय के उदय से जीव आत्म-स्वरूप का दर्शन, श्रद्धान करने में असमर्थ रहता है और चारित्रमोहनीय के उदय से जीव आत्मस्वरूप में स्थिर नहीं हो पाता है | दर्शनमोहनीय के तीन भेदों और चारित्रमोहनीय के पच्चीस भेदों को मिलाने से मोहनीयकर्म के अट्ठाईस भेद हैं। मोहनीयकर्म का पूर्ण उपशम ग्यारहवें गुणस्थान में होता है । दर्शनमोहनीय के उपशम से सम्यक्त्वलब्धि की और चारित्रमोहनीय के उपशम से चारित्रलब्धि की प्राप्ति होती है । (विशेष विस्तार के लिए देखें भाग - २ में परिशिष्ट ।) ( ३५९ ) भाव प्रकरण Jain Education International For Private & Personal Use Only The Discussion on Bhaava www.jainelibrary.org

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