Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 503
________________ * ४. रौद्ररस (५) भयजणणरूव-सबंधकार-चिंता-कहासमुप्पनो। सम्मोह-संभम-विसाय-मरणलिंगो रसो रोद्दो॥७०॥ (२६२-५) भयंकर रूप, शब्द अथवा अंधकार के चिन्तन और कथन, दर्शन आदि से रौद्ररस उत्पन्न होता है। संमोह (विवेक शून्यता), संभ्रम (व्याकुलता), विषाद (खेद) एवं मरण उसके लक्षण हैं।७०॥ रोद्दो रसो जहा भिउडीविडंबियमुहा ! संदट्ठो? ! इय रुहिरमोकिण्णा ! हणसि पसं असुरणिभा ! भीमरसिय ! अतिरोद्द ! रोद्दोऽसि ॥७१॥ रौद्र रस का उदाहरण-भृकुटियाँ ऊपर चढ़ने से तेरा मुख विकराल बन गया है, तेरे दाँत होठों को चबा रहे हैं, तेरा शरीर खून से लथपथ हो रहा है, तेरे मुख से भयानकभयोत्पादक शब्द निकल रहे हैं, जिससे तू राक्षस जैसा डरावना हो गया है। तू पशुओं की हत्या कर रहा है। इसलिए अतिशय रौद्ररूपधारी तू साक्षात रौद्ररस है।।७१॥ 4. RAUDRA-RASA 262. (5) The Raudra-rasa (sentiment of rage or fury) is evoked by thinking and talking about horrendous forms, sounds, and darkness and witnessing these. It is characterized by perplexity, alarm, sorrow, and death. (70) ____ The example of Raudra-rasa (sentiment of rage or fury) is Raised eye-brows have made your face hideous, you are biting your lips, your body is drenched in blood and you are producing fearsome sound. All this makes you awesome like a demon. You are killing animals. Thus O extremely horrendous one, you are fury (Raudra-rasa) personified. (71) ५. वीडनकरस (६) विणयोवयार-गुज्झ-गुरुदार-मेरावतिक्कमुप्पण्णो। वेलणओ नाम रसो लज्जा-संकाकरणलिंगो॥७२॥ नवरस प्रकरण ( ४२९ ) The Discussion on Nine-Sentiments Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only

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