Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 463
________________ २५७. (प्रश्न ५) औपशमिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकनिष्पन्न भाव क्या है? (उत्तर) औपशमिकभाव में उपशांतकषाय, क्षायिकभाव मे क्षायिक-सम्यक्त्व, क्षायोपशमिकभाव में इन्द्रियाँ और पारिणामिकभाव में जीवत्व, यह औपशमिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकनिष्पन्न भाव का स्वरूप है। 257. (Question 5) Which is this state produced by combination of aupashamik-bhaava, kshayik-bhaava, kshayopashamik-bhaava, and parinamik-bhaava. ___ (Answer) Upashant-kashaya (pacified passions) is (a consequence of) aupashamik-bhaava, kshayik samyaktva is (a consequence of) kshayik-bhaava, sense organs are (a consequence of) kshayopashamik-bhaava, and soul is (a consequence of) parinamik-bhaava. This is aupashamikkshayik-kshayopashamik-parinamik-bhaava (pacified state, extinct, extinct-cum-pacified and transformed state). विवेचन-इन पाँचों भंगों में से तीसरा और चौथा ये दो भंग ही जीव में घटित होते हैं, शेष तीन नहीं। घटित होने वाले भंगों का स्पष्टीकरण इस प्रकार है औदयिक-औपशमिक-क्षायोपशमिक और पारिणामिक इन चार भावों के संयोग से निष्पन्न तृतीय भंग नारक आदि चारों गतियों में होता है। क्योंकि गति औदयिकी है तथा प्रथम सम्यक्त्व के लाभकाल में उपशमभाव होने से और मनष्यगति में उपशम-श्रेणी में भी औपशमिक सम्यक्त्व होने से औपशमिकभाव है। इन्द्रियाँ क्षायोपशमिकभाव और जीवत्व पारिणामिकभाव रूप हैं। इस प्रकार यह तृतीय भंग सभी गतियों में पाया जाता है। ___ चौथा भंग भी तृतीय भंग की तरह नरकादि चारों गतियों में सम्भव है। परन्तु विशेषता यह है कि तृतीय उपशमसम्यक्त्व के स्थान पर यहाँ क्षायिक सम्यक्त्व समझना चाहिए। ___Elaboration of these five bhangs (types) only third and fourth are applicable to beings, remaining three are not. The applicable bhangs (types) are explained as follows The third type produced by combination of audayik-bhaava, aupashamik-bhaava, kshayopashamik-bhaava, and parinamikbhaava is applicable to all the four realms including hell. This is भाव प्रकरण ( ३९३ ) The Discussion on Bhaava 8 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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