Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 335
________________ ८००० होत होत LYAORYAOLYA आनुपूर्वी आदि एकवचनान्त तीन पद के असंयोगी तीन भंग हैं और इसी प्रकार बहुवचनान्त पद के तीन भंग बनते हैं। इस प्रकार पृथक्-पृथक् छह भंग हो जाते हैं और संयोगपक्ष में इन तीनों पदों के द्विसंयोगी भंग तीन होते हैं। इनमें एक-एक भंग में दो-दो का संयोग होने पर एकवचन और बहुवचन को लेकर चार-चार भंग हो जाते हैं । इस प्रकार तीनों भंगों के द्विकसंयोगी कुल भंग बारह बनते हैं तथा त्रिकसंयोग में एकवचन और बहुवचन को लेकर आठ भंग बनते हैं । इस प्रकार सब भंग मिलाकर (६+१२+८ = २६) छब्बीस होते हैं। द्रव्यानुपूर्वी के प्रसंग में सूत्र १०१ में इनके नाम बताये जा चुके हैं। तदनुसार यहाँ भी वही नाम समझ लेना चाहिए। Elaboration-Like dravya-anupurvi (physical sequence) there are 26 divisions or bhangs conforming to naigam-vyavahar naya (coordinated and particularized viewpoints) in case of kaalanupurvi. These are derived with mutual combination and separation. Separately taken there are six divisions or bhangs, three singular and three plural. Taken in combinations of two, there are three sets of four divisions or bhangs. In each of these sets combinations of a singular and a plural of each of the three categories make four divisions or bhangs each making three sets of four divisions or bhangs totaling to twelve divisions or bhangs. Taken in combination of three with singular and plural of each category there are eight divisions or bhangs. Thus adding together six, twelve, and eight divisions or bhangs make a total of twenty six divisions or bhangs. (refer to aphorism 101 for more details) (ग) भंगोपदर्शनता १८८. से किं तं गम-ववहाराणं भंगोवदंसणया ? भंगोवदंसणया - ( १ ) गम-ववहाराणं तिसमयतीए आणुपुब्बी, (२) एगसमयट्ठितीए अणाणुपुब्बी, (३) दुसमयट्ठितीए अवत्तब्बए, (४) तिसमयट्ठितीयाओ आणुपुब्बीओ, (५) एगसमयट्ठितीयाओ अणाणुपुब्बीओ, (६) दुसमयट्ठितीयाई अवत्तब्बयाई । एवं दव्याणुगमेणं ते चैव छव्वीसं भंगा भाणियव्वा, जाव से तं णेगम - ववहाराणं भंगोवदंसणया । पूर्वी प्रकरण ( २७१ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only The Discussion on Anupurvi www.jainelibrary.org

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